________________ प्रस्तुत ग्रन्थ : एक परिचय कर्मसिद्धान्त एवं जैनदर्शन के प्रकाण्ड विद्वान आचार्य चन्द्रषि महत्तर (विक्रम E-10 शती) द्वारा रचित कर्मविषयक 8 पाँच ग्रन्थों का सार संग्रह है-पंच संग्रह। इसमें योग, उपयोग, गुणस्थान, कर्मबन्ध, बन्धहेतु, उदय, सत्ता, बन्धनादि आठ करण एवं अन्य विषयों का प्रामाणिक 2 विवेचन है जो दस खण्डों में पूर्ण है। आचार्य मलयगिरि ने इस विशाल ग्रन्थ पर अठारह हजार लोक परिमाण विस्तृत टीका लिखी है। * वर्तमान में इसकी हिन्दी टीका अनुपलब्ध थी ! अमणसूयं 38 2 मरुधर केसरी श्री मिश्रीमल जो महाराज के सान्निध्य में, तथा मरुधराभूषण श्री सुकनमुनि जी की संप्रेरणा से इस अत्य त 40 महत्वपूर्ण, दुर्लभ, दुर्बाध ग्रन्थ का सरल हिन्दी भाष्य प्रस्तुत a किया है-जैनान के विद्वान श्री देवकुमार जैन ने। He यह विशाल ग्रन्थ क्रमश: दस भागों में प्रकाशित किया जा * रहा है। इस ग्रन्थ के प्रकाशन से जैन कर्म सिद्धान्त विषयक विस्मृतप्राय: महत्वपूर्ण निधि पाठकों के हाथों में पहुंच रही है, जिसका एक ऐतिहासिक मूल्य है। -श्रीचन्द सुराना 'सरस' le प्राप्ति स्थान :श्रो मरुधर केसरी साहित्य प्रकाशन समिति पीपलिया बाजार, ब्यावर (राजस्थान) ary.org