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________________ १२० सिज्झति जत्तिया किर इह संववहारजीवरासीओ 1 अणाइवणस्सइरासीओ तत्तिया तंमि ॥ इंति पंचसंग्रह : २ अर्थात् सांव्यवहारिक राशि में से जितने जीव मोक्ष में जाते हैं, उतने जीव अनादि वनस्पति राशि में से — सूक्ष्म निगोदराशि में से सांव्यवहारिक राशि में आते हैं । इस प्रकार से वेदत्रिक और संज्ञित्व की कायस्थिति का निर्देश करने के बाद अब बादर पर्याप्त एकेन्द्रिय आदि की कायस्थिति को बतलाते हैं । बादर पर्याप्त एकेन्द्रियादि की कार्यस्थिति बायरपज्जेगिदिय विगलाणय वाससहस्स संखेज्जा । पत्तेगमंतमुहू ||४६ || अपज्जंत सुहुमसाहारणाण शब्दार्थ - बायर - बादर, पज्जेगिदिय - पर्याप्त एकेन्द्रिय, विगलाण - विकलेन्द्रियों की, य― और वाससहस्स– हजार वर्ष, संखेज्जा -- संख्यात, अपज्जत -- अपर्याप्त, सुहुमसाहारणाण - सूक्ष्म, साधारण की, पत्ते गं - प्रत्येक, अतं मुहू- अन्तर्मुहूर्त | गाथार्थ - बादर पर्याप्त एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रियों की कायस्थिति संख्यात हजार वर्ष है और अपर्याप्त, सूक्ष्म और साधारण इन प्रत्येक की कार्यस्थिति अन्तर्मुहूर्त है । विशेषार्थ - गाथा में बादर पर्याप्त एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय और अपर्याप्त, सूक्ष्म, साधारण जीवों की कार्यस्थिति का प्रमाण बतलाया है । जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है बारम्बार पर्याप्त बादर एकेन्द्रिय रूप से बादर एकेन्द्रिय की कार्यस्थिति जघन्य से उत्कृष्ट से संख्यात हजार वर्ष की है । यह बादर पर्याप्त एकेन्द्रिय की काय स्थिति का विचार सामान्य बादर पर्याप्त एकेन्द्रिय की अपेक्षा से किया गया है। लेकिन बादर पर्याप्त पृथ्वीकाय एकेन्द्रिय, बादर Jain Education International उत्पन्न होने वाले पर्याप्त अन्तर्मुहूर्त की है और For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001899
Book TitlePanchsangraha Part 02
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages270
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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