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बंधक-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ४८
जीवों की अपेक्षा समझना चाहिये ।। क्योंकि अनादि निगोद में से सांव्यवहारिक जीवों में आकर पुनः असांव्यवहारिक जीवों में जाये तो वे उसमें असंख्य पुद्गलपरावर्तन पर्यन्त ही रहते हैं । ___असांव्यवहारिक जीवों की अपेक्षा अनन्त काल दो प्रकार का है। जो असांव्यवहारिक राशि में से निकलकर किसी समय भी सांव्यवहारिक राशि में आने वाले नहीं हैं, वैसे कितने ही जीवों की अपेक्षा अनादि-अनन्त काल है। ऐसे भी अनन्त सूक्ष्म निगोद जीव हैं, जो वहाँ से निकले नहीं हैं और निकलेंगे भी नहीं तथा जो असांव्यवहारिक राशि में से निकलकर सांव्यवहारिक राशि में आयेंगे, वैसे कितने ही जीवों की अपेक्षा अनादि-सांत काल है। यहाँ जो आयेंगे ऐसा कहा गया है, वह प्रज्ञापक कालभावी सांव्यवहारिक राशि में वर्तमान जीवों की अपेक्षा कहा है । अन्यथा जो असांव्यवहारिक राशि में से निकल कर सांव्यवहारिक राशि में आये, आते हैं और आयेंगे, उन सबके नपुसकवेद का काल अनादि-सांत होता है।
प्रश्न-असांव्यवहारिक राशि में से निकलकर जीव क्या सांव्यवहारिक राशि में आते हैं ?
उत्तर-जीवों के असांव्यवहारिक राशि में से निकलकर सांव्यवहारिक राशि में आने के बारे में पूर्वाचार्यों के वचन प्रमाण हैं । जैसे कि आचार्य जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने अपने विशेषणवती ग्रन्थ में कहा है
३ यहाँ पुरुषत्व, स्त्रीत्व और नपुंसकत्व द्रव्य सम्बन्धी लेना चाहिये। यानि
पुरुषादि का आकार निरन्तर इतने काल प्राप्त होता है । तत्पश्चात् आकार अवश्य बदल जाता है। यदि यह कहा जाये कि एक भव से दूसरे भव में जाते हुए तो कोई आकार होता नहीं है तो फिर उक्त काल कैसे घट सकता है ? तो इसका उत्तर है कि शरीर होने के बाद अवश्य होने वाला
है। इसलिए यह कथन अयुक्त नहीं है। Jain Education International
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