________________
बंधक-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ४७ सगट्ठभवा'। इनमें एक के बाद एक लगातार मनुष्य अथवा तिर्यंच भव हों तो सात भव संख्यात वर्ष की आयु वाले होते हैं और आठवां भव असंख्य वर्ष की आयु वाले भोगभूमियों का ही होता है।
वह इस प्रकार जानना चाहिये कि पर्याप्त मनुष्य अथवा पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच निरन्तर अनुक्रम से पर्याप्त मनुष्य अथवा तिर्यंच के सात भव अनुभव करके आठवें भव में यदि वह पर्याप्त मनुष्य या पर्याप्त संज्ञी तिर्यंच हो तो अनुक्रम से अवश्य असंख्य वर्ष की आयु वाला युगलिक मनुष्य अथवा युगलिक तिर्यंच होता है, परन्तु संख्यात वर्ष की आयु वाला नहीं होता है और असंख्यात वर्ष की आयु वाले युगलिक मरण कर देवलोक में ही उत्पन्न होने से नौवां भव पर्याप्त मनुष्य या पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच का नहीं होता है। इस कारण पिछले सात भव निरन्तर हों तो संख्यात वर्ष की आयु वाले ही होते हैं । बीच में असंख्य वर्ष की आयु वाला एक भी भव नहीं होता है । क्योंकि असंख्य वर्ष की आयु वाले भव के अनन्तर तत्काल ही मनुष्व भव या तिर्यंच भव असम्भव है। इसी कारण पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय मनुष्य और तिर्यंच की उत्कृष्ट कायस्थिति सात, आठ भव मानी जाती है।
ऊपर मनुष्य और तिर्यंच की कायस्थिति सात, आठ भव कही है, उसका उत्कृष्ट से काल-प्रमाण बतलाते हैं
पुव्वकोडिपुहुत्तं पल्लतियं तिरिनराण कालेणं । नाणाइगपज्जत मणूणपल्लसंखंस अंतमुह ॥४७॥
शब्दार्थ-पुब्वकोडिपुहुत्तं-पूर्वकोटि पृथक्त्व, पल्लतियं-तीन पल्य, तिरिनराण-तिर्यंच और मनुष्यों की, कालणं-काल से, नाणाइगपज्जत्त
१ उत्कृष्ट से पूर्वकोटि वर्ष की आयु वाले संख्यात वर्ष की और उससे एक
समय भी अधिक आयु वाले असंख्यात वर्ष की आयु वाले माने जाते हैं । आयु के सम्बन्ध में संख्यात और असंख्यात का यह तात्पर्य समझना चाहिए।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org