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________________ बंधक - प्ररूपणा अधिकार : गाथा ४२ १०५ होता है, मीसुवसम - मिश्रदृष्टि गुणस्थान और उपशम सम्यक्त्व, अंतमुहू - अन्तर्मुहूर्त, खाइदिट्ठी - क्षायिक सम्यक्त्व, अनंतद्धा - अनन्त काल पर्यन्त । गाथार्थ -- सासादन गुणस्थान समय से लेकर पर्यन्त होता है, मिश्र दृष्टि गुणस्थान सम्यक्त्व अन्तर्मुहूर्त पर्यन्त तथा क्षायिक कालपर्यन्त होता है । विशेषार्थ - गाथा में सासादन गुणस्थान का काल बतलाने के प्रसंग में कहा है कि सासादन गुणस्थान एक समय से लेकर छह आवfear पर्यन्त होता है । जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है कि पहले गुणस्थानों का स्वरूप बतलाने के प्रसंग में कहा है कि जिसने सासादन भाव प्राप्त किया है, ऐसा कोई जीव सासादन गुणस्थान में एक समय रहता है, दूसरा कोई दो समय अन्य कोई तीन समय रहता है, इस प्रकार कोई छह आवलिका पर्यन्त रहता है, उसके बाद मिथ्यात्व गुणस्थान में चला जाता है । जिससे एक जीव की दृष्टि से सासादन गुणस्थान का काल जघन्य से एक समय और उत्कृष्ट से छह आवलिका होता है । छह आवलिका और औपशमिक सम्यक्त्व अनन्त 'मीसुवसम अंतमुहू' अर्थात् मिश्र दृष्टि गुणस्थान और उपशम सम्यक्त्व का काल जघन्य और उत्कृष्ट से अन्तर्मुहूर्त पर्यन्त है । यानि मिश्र दृष्टि गुणस्थान का जघन्य और उत्कृष्ट से अन्तर्मुहूर्त काल प्रसिद्ध है। मात्र जघन्य पद में अन्तर्मुहूर्त लघु और उत्कृष्ट पद में बड़ा लेना चाहिये । औपशमिक सम्यक्त्व जो मिथ्यात्व गुणस्थान में तीन करण करके प्राप्त होता है, उसका अथवा उपशमश्र णिवर्ती सम्यक्त्व का जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । उनमें से पहले प्रकार के उपशम सम्यक्त्व का अन्तर्मुहूर्त काल इस प्रकार जानना चाहिये कि मिथ्यात्व गुणस्थान में तीन करण करके उपशम सम्यक्त्व सहित देशविरत आदि गुणस्थानों में भी जाये तब भी उसका अन्तर्मुहूर्त ही स्थितिकाल है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001899
Book TitlePanchsangraha Part 02
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages270
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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