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________________ १०२ पंचसंग्रह : २ इस प्रकार से बादर और सूक्ष्म काल पुद्गलपरावर्तन का स्वरूप बतलाने के बाद अब बादर और सूक्ष्म भाव पुद्गलपरावर्तन का स्वरूप बतलाते हैं। भाव पुद्गलपरावर्तन अणुभागट्ठाणेसु अणंतरपरंपराविभत्तीहिं । भावंमि बायरो सो सुहमो सव्वेसुणुक्कमसो ॥४१॥ शब्दार्थ-अणुभागट्ठाणेसु-अनुभागस्थानों में, अणंतरपरंपराविभत्तीहि-अनन्तर और परम्परा के क्रम से, भावंमि-भाव में, बायरो-बादर, सो-वह, सहुमो-सूक्ष्म, सव्वेसुणुक्कमसो-अनुक्रम से समस्त अध्यवसायों में। गाथार्थ-अनन्तर और परम्परा के क्रम से अनुभागस्थानों में मरण को प्राप्त करते जितना काल हो, उसे बादर भाव पुद्गलपरावर्तन कहते हैं और अनुक्रम से समस्त अध्यवसायों में मरण को प्राप्त करते जितना काल जाता है, उसे सूक्ष्म भाव पुद्गलपरावर्तन कहते हैं। विशेषार्थ-यहाँ पुद्गलपरावर्तन के चार भेदों में से अंतिम भाव पुद्गलपरावर्तन के बादर और सूक्ष्म प्रकारों का स्वरूप बतलाया है कि अनुभागस्थानों में यानि रसबंध में हेतुभूत असंख्यात लोकाकाशप्रदेश प्रमाण अध्यवसायों में एक जीव जितने काल में अनन्तर अथवा परंपरा से मरण को प्राप्त करे, उतने काल को बादर भाव पुद्गलपरावर्तन कहते हैं । - इसका तात्पर्य यह है कि अनुभागस्थान अर्थात् रसस्थानों के बंध अवसर्पिणी काल के सब समयों में जब मरण कर चुकता है, तो उसे सूक्ष्म काल पुद्गलपरावर्तन कहते हैं। क्षेत्र की तरह यहाँ भी समयों की गणना क्रमवार करना चाहिए। व्यवहित की गणना नहीं की जाती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.001899
Book TitlePanchsangraha Part 02
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages270
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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