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________________ बंधक-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ३१-३३ ৩৩ इस प्रकार कुल मिलाकर उनकी बारह राजू की स्पर्शना होती है। उपशमक, उपशान्त और प्रमत्त, अप्रमत्तविरत जीव ऋजुगति से सर्वार्थसिद्धविमान में उत्पन्न होते हैं तथा देशविरत मनुष्य बारहवें देवलोक में उत्पन्न होते हैं । (इस-इस अपेक्षा से उन-उन गुणस्थानवी जीवों की क्रमशः सात और छह राजू की स्पर्शना घटित होती है ।) विशेषार्थ-इन तीन गाथाओं में से पहली गाथा में तीसरे और चौथे गुणस्थानवी जीवों की, दूसरी में दूसरे सासादनगुणस्थानवर्ती जीवों की और तीसरी में पांचवें से लेकर बारहवें गुणस्थान तक के जीवों की स्पर्शना का विचार किया गया है। अनुक्रम से जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है मिश्रदृष्टिगुणस्थानवी जीव मरण को प्राप्त नहीं होने से यहाँ भवस्थ मिश्रदृष्टि का ग्रहण करना चाहिये। सहस्रार देवलोक तक के देव पूर्वजन्म के मित्र नारक के स्नेहवश उसकी वेदना शान्त करने अथवा उपलक्षण से पूर्वजन्म के शत्रु नारक की वेदना बढ़ाने के लिये तीसरी नरकपृथ्वी तक जाते हैं। यद्यपि आनत आदि देवलोकों के देवों में जाने को शक्ति है, किन्तु अल्प स्नेह आदि वाले होने के स्नेहादि प्रयोजन से भी नरक में नहीं जाते हैं । इसीलिये यहाँ सहस्रार तक के देवों का ग्रहण किया है। अच्युत देवलोक के देव जन्मान्तर के स्नेह से अथवा इसी भव के स्नेह से अन्य देवों को अच्युत देवलोक पर्यन्त ले जा सकते हैं। जिससे मिश्रदृष्टि और अविरतसम्यग्दृष्टि इन दोनों के आठ-आठ राजू की स्पर्शना घटित होती है।' १ अविरतसम्यग्दृष्टि की स्पर्शना मिश्रदृष्टि की तरह जो आठ राजू की कही है, उसमें मिश्रदृष्टि मरण को प्राप्त नहीं होने से जैसे भवस्थ का (क्रमशः) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001899
Book TitlePanchsangraha Part 02
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages270
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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