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पंचसंग्रह जीवों की स्पर्शना का प्रमाण बतलाया है। जिसका तीन गाथाओं में कारण सहित स्पष्टीकरण इस प्रकार है
सहसारंतियदेवा नारयनेहेण जंति तइयभुवं । निज्जति अच्चुयं जा अच्चुयदेवेण इयरसुरा ॥३१॥ छट्ठाए नेरइओ सासणभावेण एइ तिरिमणुए। लोगतनिक्कुडेसु जंतिऽन्ने सासणगुणत्था ॥३२॥ उवसामगउवसंता सव्वळे अप्पमत्तविरया य।
गच्छन्ति रिउगईए पुदेसजया उ बारसमे ॥३३ ॥ शब्दार्थ-सहसारंतिय-सहस्रार तक के, देवा-देव, नारयनेहेणनारकों के स्नेह से, जंति-जाते हैं, तइयभुवं-तीसरी पृथ्वी, निज्जंति-ले जाते हैं, अच्चुयं-अच्युत, जा-पर्यन्त, अच्चुयदेवेण-अच्युत देवलोक के देव, इयरसुरा-दूसरे देवों को।
छट्ठाए-छठी नरकपृथ्वी में वर्तमान, नेरइओ-नारक, सासणभावेणसासादनभाव सहित, एइ-आते हैं, उत्पन्न होते हैं, तिरिमणुए -तिर्यंच और मनुष्य में, लोगंतनिक्कुडेसु-लोकान्त के निष्कुट क्षेत्रों में, जंति-जाते हैं, अन्ने—अन्य, सासणगुणस्था-सासादनगुणस्थान वाले ।
उवसामग-उपशमक, उवसंता-उपशांत, सम्वट-सर्वार्थसिद्ध विमान में, अप्पमत्तविरया--अप्रमत्तविरत, य-और, गच्छन्ति-जाते हैं, उत्पन्न होते हैं, रिउगईए-ऋजुगति से, पु-पुरुष (मनुष्य), देसजया-देशविरत जीव, उऔर, बारसमे-बारहवें।
गाथार्थ-सहस्रार देवलोक तक के देव नारकों के स्नेह से तीसरी पृथ्वी तक जाते हैं और अच्युत देवलोक के देव दूसरे देवों को अच्युत देवलोक पर्यन्त ले जाते हैं, (जिससे उनकी आठ-आठ राजू की स्पर्शना घटित होती है।)
छठी नरकपृथ्वी में वर्तमान नारक सासादनभाव सहित तिर्यंच या मनुष्य में उत्पन्न होते हैं तथा कितने ही सासादनगुणस्थानवर्ती जाव लोकान्त के निष्कुट क्षेत्रों में उत्पन्न होते हैं ।
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