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________________ योगोपयोगमार्गणा : गाथा ४ मुख्य रूप से योग का वाचक है। लेकिन यहाँ जो पुद्गल उस वीर्यव्यापार में कारण हैं, उन मन, वचन और काय के पुद्गलों में ही कार्य का आरोप करके उन पुद्गलों को योग शब्द से विवक्षित किया है। इसी अपेक्षा से मनोयोग के चार, वचनयोग के चार और काययोग के सात भेद होते हैं । जिनके नाम इस प्रकार हैं___ मनोयोग-१ सत्य मनोयोग, २ असत्य मनोयोग, ३ सत्य-असत्य मनोयोग, ४ असत्य-अमृषा मनोयोग (व्यवहार मनोयोग)। वचनयोग-१ सत्य वचनयोग, २ असत्य वचनयोग, ३ सत्य-असत्य वचनयोग, ४ असत्य-अमृषा वचनयोग (व्यवहार वचनयोग)। काययोग-१ वैक्रियकाययोग, २ वैक्रियमिश्र काययोग, ३ आहारक काययोग, ४ आहारकमिश्र काययोग, ५ औदारिक काययोग, ६ औदा रिकमिश्र काययोग, ७ कामण काययोग ।' अब योग के उक्त पन्द्रह भेदों का स्वरूप बतलाते हैं । मनोयोग के भेदों के लक्षण सत्य मनोयोग-सत् अर्थात् प्राणी, जीव, आत्मा आदि । उनके लिये जो हितकर हो उसे सत्य कहते हैं । ' अथवा 'सत्' यानि मुनि या पदार्थ । जो मुनि और पदार्थ को साधु-हितकर हो वह सत्य कहलाता है।' अथवा सम्यग्ज्ञान के विषयभूत पदार्थ को सत्य कहते हैं। अर्थात् जैसा हो वैसा ही चिन्तन करना और कहना सत्य का सामान्य लक्षण है। १ इस प्रकार से काययोग के भेदों के क्रमविधान का कारण आगे स्पष्ट किया जायेगा। २ संतः प्राणिनोऽभिधीयन्ते, तेभ्यो हितं सत्यम् । -पंचसंग्रह, स्वोपज्ञवृत्ति पृ. ४ ३ संतो मुनयः पदार्था वा तेषु..""""साधु सत्यम् । -पंचसंग्रह, मलयगिरिटीका पृ. ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001898
Book TitlePanchsangraha Part 01
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages312
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size15 MB
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