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________________ प्रस्तुत ग्रन्थ : एक परिचय pa ce _कर्मसिद्धान्त एवं जैनदर्शन के प्रकाण्ड विद्वान आचार्य 26 चन्द्रषि महत्तर (विक्रम 8-10 शती) द्वारा रचित कर्मविषयक पाँच ग्रन्थों का सार संग्रह है-पंच संग्रह। इसमें योग, उपयोग, गुणस्थान, कर्मबन्ध, बन्धहेतु, उदय, sale सत्ता, बन्धनादि आठ करण एवं अन्य विषयों का प्रामाणिक * विवेचन है जो दस खण्डों में पूर्ण है। * आचार्य मलयगिरि ने इस विशाल ग्रन्थ पर अठारह हजार लोक परिमाण विस्तृत टीका लिखी हैं। वर्तमान में इसकी हिन्दी टीका अनुपलब्ध थी। अमणसूर्य 380 * मरुधर केसरी श्री मिश्रीमल जो महाराज के सान्निध्य में, 5 तथा मरुधराभूषण श्री सुकनमुनि जी की संप्रेरणा से इस अत्यन्त 88 महत्वपूर्ण, दुर्लभ, दुर्बोध ग्रन्थ का सरल हिन्दी भाष्य प्रस्तुत 380 * किया है-जैनान के विद्वान श्री देवकुमार जैन ने। यह विशाल ग्रन्थ क्रमश: दस भागों में प्रकाशित किया जा 20 रहा है / इस ग्रन्थ के प्रकाशन से जैन कर्म सिद्धान्त विषयक एक विस्मृतप्रायः महत्वपूर्ण निधि पाठकों के हाथों में पहुंच रही है, जिसका एक ऐतिहासिक मूल्य है। -श्रीचन्द सुराना 'सरस' प्राप्ति स्थान :श्री मरुधर केसरी साहित्य प्रकाशन समिति पीपलिया बाजार, ब्यावर (राजस्थान) Clibrary.org
SR No.001898
Book TitlePanchsangraha Part 01
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages312
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size15 MB
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