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________________ ११० पंचसंग्रह (१) - इस प्रकार मार्गणास्थानों के बासठ उत्तर भेदों में संभव योगों का कथन करने के पश्चात् अब योगों की तरह उनमें उपयोगों की संख्या बतलाते हैं। मार्गणास्थानों में उपयोग मणुयगईए बारस मणकेवलवज्जिया नवन्नासु । इगिथावरेसु तिन्नि उ चउ विगले बार तससगले ।।१३।। जोए वेए सन्नी आहारगभव्वसुक्कलेसासु । वारस संजमसंमे नव दस लेसाकसाएसु ॥१४॥ शब्दार्थ-मणुयगईए-मनुष्यगति में, बारस-बारह, मणकेवलवज्जियामनपर्यायज्ञान और केवल द्विक से रहित, नव-नौ, अन्नासु-अन्य गतियों में, इगिथावरेसु-एकेन्द्रिय और स्थाबरों में, सिन्न- तीन, उ-और, चउ--चार विगले-विकलेन्द्रियों में, बार-बारह, तस-त्रस, सगले-सकलेन्द्रियवाले पंचेन्द्रिय में। जोए-योग में, वेए-वेद में, सन्नी--संज्ञी, आहारग--आहारक, भष्व-भव्य, सुक्कलेसासु-शुक्ललेश्या में, बारस-बारह, संजम-संयम, संमे-- सम्यक्त्व मार्गणा में, नव-- नौ, दस-दस, लेसा-लेश्या (शुक्ल के अतिरिक्त), कसाएसु–कषाय मार्गणा में। गाथार्थ-मनुष्यगति में बारह उपयोग तथा शेष गतियों में मनपर्यायज्ञान और केवलद्विक से रहित (छोड़कर) नौ उपयोग होते हैं । एकेन्द्रिय और स्थावरों में तीन, विकलेन्द्रियों में चार, और पंचेन्द्रिय मार्गणा में बारह उपयोग होते हैं। योग, वेद, संज्ञी, आहारक, भव्य और शुक्ललेश्या मार्गणा में बारह उपयोग तथा संयम और सम्यक्त्व मार्गणा में नौ एवं लेश्या और कषाय मार्गणा में दस उपयोग होते हैं । विशेषार्थ-उपयोग का लक्षण और उसके बारह भेदों के नाम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001898
Book TitlePanchsangraha Part 01
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages312
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size15 MB
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