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________________ योगोपयोगमार्गणा अधिकार . गाथा ६-१२ रूप भेदों में तथा उपलक्षण से आहारमार्गणा के भेद अनाहारक, इन ७ मार्गणाओं में वचनयोग के चारों भेद नहीं होते हैं । शेष मार्गणाभेदों में वचनयोग के चार उत्तरभेदों में से जो जिसमें पाया जाता है, अब इसको स्पष्ट करते हैं__ 'विगलेसु असच्चमोसेव' अर्थात् विकलेन्द्रियों--द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रियों, इन्द्रियमार्गणा के इन तीन भेदों में तथा उपलक्षण से इनके ही समकक्ष असंज्ञियों में भी असत्यामृषा वचनयोग समझना चाहिए। क्योंकि इनमें वचनयोग की साधन रूप भाषालब्धि होती है, इसलिए इनमें असत्यामृषा वचनयोग होता है। ___ केवलज्ञान और केवलदर्शन इन दो मार्गणाओं में सत्य और असत्यामृषा यह दो वचनयोग होते हैं, जो केवली भगवान को देशना देने आदि के समय होते हैं। __ पूर्वक्त के अतिरिक्त जिन मार्गणास्थानों में मनोयोग के चार और वचनयोग के चार भेद होते हैं, उनके नाम इस प्रकार हैं___ गतिमार्गणा-नरकादि चारों गति, इन्द्रियमार्गणा-पंचेन्द्रिय, कायमार्गणा-वसकाय, योगमार्गणा-मन आदि तीनों योग और भेदापेक्षा तथारूप अपना अपना योग, वेदमागणा-स्त्री आदि तीनों वेद, कषायमार्गणा-क्रोधादि चारों कषाय, ज्ञानमार्गणा-केवलज्ञान के सिवाय शेष मतिज्ञान आदि सात भेद तथा केवलज्ञान में सत्य, असत्यामृषा नामक मनोयोग-वचनयोगद्वय, संयममार्गणा-सामायिक आदि सात भेद, दर्शनमार्गणा-चक्षु, अचक्षु और अवधिदर्शन तथा केवलदर्शन में सत्य, असत्यामृषा मनोयोग-वचनयोग, लेश्यामार्गणाकृष्णादि छहों लेश्या, भव्यमार्गणा-भव्य अभव्य दोनों भेद, सम्यक्त्वमार्गणा-उपशम सम्यक्त्व आदि छहों भेद, संज्ञीमागंगा-संज्ञी जीव, आहारमार्गणा-आहारी जीव ।। इस प्रकार बासठ मार्गणास्थानों में विधि-निषेष प्रणाली से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001898
Book TitlePanchsangraha Part 01
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages312
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size15 MB
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