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________________ सप्ततिका प्रकरण क्षपकोणि और क्षीणमोह गुणस्थान में निद्राद्विक का उदय नहीं होता है । कर्मप्रकृति तथा पंचसंग्रह के कर्ताओं का भी यही मत है। किन्तु पंचसंग्रह के कर्ता क्षपक श्रेणि और क्षीणमोह गुणस्थान में पाँच प्रकृति का भी उदय होता है, इस मत से परिचित थे और उसका उल्लेख उन्होंने 'पंचण्ह वि केइ इच्छंति इस पद से किया है । आचार्य मलयगिरि ने इसे कर्मस्तवकार का मत बताया है । इस प्रकार यह ज्ञात होता है कि कर्मस्तवकार के सिवाय प्रायः सभी कार्मग्रन्थिकों का यही मत रहा है कि क्षपकौणि और क्षीणमोह गुणस्थान में निद्राद्विक का उदय नहीं होता है। दिगम्बर परम्परा में सर्वत्र विकल्प वाला मत पाया जाता है। कषायपाहुड चूर्णि में इतना संकेत किया गया है कि 'क्षपकोणि पर चढ़ने वाला जीव आयु और बेदनीय कर्म को छोड़कर उदय प्राप्त शेष सब कर्मों की उदीरणा करता है । इस पर टीका करते हुए वीरसेन स्वामी ने जयधवला क्षपणाधिकार में लिखा है कि क्षपकोणि वाला जीव पाँच ज्ञानावरण और चार दर्शनावरण का नियम से वेदक है किन्तु निद्रा और प्रचला का कदाचित् वेदक है, क्योंकि इनका कदाचित् अव्यक्त उदय होने में कोई विरोध नहीं आता है। अमिति १ निहापयलाणं खीणरागखवगे परिच्चज्ज । -कर्मप्रकृति उ० गा० १० २ पंचसंग्रह सप्ततिका गा० १४ ३ कर्मस्तवकारमतेन पञ्चानामप्युदयो भवति । -पंचसंग्रह सप्ततिका टीका, गा० १४ ४ आउगवेदणीयवज्जाणं वेदिज्जमाणाणकम्माणं पवेसगो । __-कषायपाहुड चूणि (यतिवृषभ) ५ पंचण्हं णाणावरणीयाणं चदुग्रहं दंसणावरणीयाणं णियमा वेदगो, णिद्दापयलाणं सिया, तासिमवत्तोदयस्स कदाहं संभवे विरोहाभावादो। - -जयधवला (क्षपणाधिकार) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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