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________________ ३४ भंग क्रम १ ? बंध ५ ० उदय सत्ता गुणस्थान १ से १० गुणस्थान X ५ ५ ११ वाँ १२ वाँ जीवस्थान Jain Education International १४ सप्ततिका प्रकरण काल जघन्य अन्तर्मुहूर्त | देशोन अपार्ध उत्कृष्ट पुद्गल परावर्त 1 १ संज्ञी एक समय अन्तर्मुहूर्त पर्याप्त ज्ञानावरण और अन्तराय कर्म की उत्तर प्रकृतियों के संवेध भंग बतलाने के बाद अब दर्शनावरण कर्म के संवेध भंगों को बतलाते हैं । दर्शनावरण कर्म बंधस्स य संतस्स य पगइट्ठाणाइं तिन्नितुल्लाई । उदय ट्ठाणाई दुवे चउ पणगं दंसणावरणं ॥ ७ ॥ } शब्दार्थ — बंधस्स --- बंध के य-और, संतस्स - सत्ता के, य - और, पगइट्ठाणाई - प्रकृतिस्थान, तिन्नि-तीन, तुल्लाई-समान, उदयट्ठाणाई - उदयस्थान, दुवे-दो, चउ-चार, पणगंपाँच, दंसणावरणे - दर्शनावरण कर्म में । 3 पहले भंग का जो उत्कृष्ट काल देशोन अपार्ध पुद्गल परावर्त बतलाया है, वह काल के सादि-सान्त विकल्प की अपेक्षा बताया है । क्योंकि जो जीव उपशान्तमोह गुणस्थान से च्युत होकर अन्तर्मुहूर्त काल के भीतर उपशान्तमोह या क्षीणमोह हो जाता है, उसके उक्त भंग का जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त प्राप्त होता है तथा जो अपार्ध पुद्गल परावर्त काल के प्रारंभ में सम्यग्दृष्टि होकर और उपशमश्रेणि चढ़कर उपशान्तमोह हो जाता है, अनन्तर जब संसार में रहने का काल अन्तर्मुहूर्त शेष रहता है तब क्षपकश्रेणि पर चढ़कर क्षीणमोह हो जाता है, उसके उक्त भंग का उत्कृष्ट काल देशोन अपार्ध पुद्गल परावर्त प्रमाण प्राप्त होता है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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