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________________ षष्ठ कर्म ग्रन्थ : गा०६ अतः इन दोनों कर्मों में से प्रत्येक का दसवें गुणस्थान तक पांच प्रकृतिक बंध, पांच प्रकृतिक उदय और पांच प्रकृतिक सत्ता, यह एक भंग होता है तथा ग्यारहवें और बारहवें गुणस्थान में पांच प्रकृतिक उदय, पांच प्रकृतिक सत्ता यह एक भंग होता है। इस प्रकार पांचों ज्ञानावरण, पांचों अन्तराय की अपेक्षा कुल दो संवेध भंग होते हैं। उक्त दो भंगों में से पांच प्रकृतिक बंध, पांच प्रकृतिक उदय और पांच प्रकृतिक सत्ता इस भंग के काल के अनादि-अनन्त, अनादि-सान्त और सादि-सान्त ये तीन विकल्प प्राप्त होते हैं। इनमें से अनादिअनन्त विकल्प अभव्यों की अपेक्षा है ; जो अनादि मिथ्यादृष्टि या उपशान्तमोह गुणस्थान को प्राप्त नहीं हुआ। सादि मिथ्यादृष्टि जीव सम्यग्दर्शन और चारित्र को प्राप्त करके तथा श्रेणि पर आरोहण करके उपशान्तमोह या क्षीणमोह हो जाते हैं, उनके अनादि-सान्त विकल्प होता है । उपशान्तमोह गुणस्थान से पतित जीवों की अपेक्षा सादि-सान्त विकल्प है। पाँच प्रकृतिक उदय और पाँच प्रकृतिक सत्ता, इस दूसरे विकल्प का जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। क्योंकि यह भंग उपशान्तमोह गुणस्थान में होता है और उपशान्तमोह गुणस्थान का जघन्य काल एक समय है, अतः इस भंग का भी जघन्य काल एक समय माना है। उपशान्तमोह और क्षीणमोह गुणस्थान का उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है, अतः इस भंग का भी उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त माना गया है। ज्ञानावरण और अन्तराय कर्म के संवेध भंगों का विवरण जीवस्थान और गुणस्थान व काल सहित इस प्रकार समझना चाहिये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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