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________________ षष्ठ कर्म ग्रन्थ : गा० ४ २५ आदि के तेरह जीवस्थानों के दो-दो भंगों का विवरण इस प्रकार समझना चाहिये- जीवस्थान सू० ए० अ० सू० ए० प० वा० ए० अप० बा० ए० प० द्वी० अ० द्वा० प० त्री० अप० त्री० ० प० च० अप० च० प० असं० पं० अप० असं० पं० प० सं० पं० अप० बन्ध Jain Education International 99999999999 IS IS Is Is Is 15 IS Is is is sis ७/८ ७/८ ७/८ ७/८ उदय द IS IS AIS IS 15 15 15 15 15 15 15 15 15 IS IS IS AIS IS 15 15 15 15 15 15s is सत्ता 'एगम्मि पंचभंगा' अर्थात् पूर्वोक्त तेरह जीवस्थानों से शेष रहे एक चौदहवें जीवस्थान में पाँच भंग होते हैं । इन पाँच भंगों में पूर्वोक्त दो भंग - १. सात प्रकृतिक बन्ध, आठ प्रकृतिक उदय व सत्ता, २. आठ प्रकृतिक बन्ध, आठ प्रकृतिक उदय और आठ प्रकृतिक सत्ता तो होते ही हैं। साथ में १. छह प्रकृतिक बन्ध, आठ प्रकृतिक उदय और आठ प्रकृतिक सत्ता, २. एक प्रकृतिक बन्ध, सात प्रकृतिक उदय और आठ प्रकृतिक सत्ता, ३. एक प्रकृतिक बन्ध, सात प्रकृतिक उदय और सात प्रकृतिक सत्ता यह तीन भंग और होते हैं । इस प्रकार पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय के कुल पाँच भंग समझने चाहिये । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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