SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 559
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पारिभाषिक शब्द-कोष संघात समासश्रुत - किसी एक मार्गणा के अनेक अवयवों का ज्ञान । संज्वलन कषाय - जिस कषाय के उदय से आत्मा को यथाख्यात चारित्र की प्राप्ति न हो तथा सर्वविरति चारित्र के पालन में बाधा हो । संज्ञा --- नोइन्द्रियावरण कर्म के क्षयोपशम या तज्जन्य ज्ञान को अथवा अभिलाषा को संज्ञा कहते हैं । संज्ञाक्षर-अक्षर की आकृति, बनावट, संस्थान आदि जिसके द्वारा यह जाना जाये कि यह अमुक अक्षर है । संज्ञित्व --- विशिष्ट मनशक्ति, दीर्घकालिकी संज्ञा का होना । ६० • संज्ञी - बुद्धिपूर्वक इष्ट-अनिष्ट में प्रवृत्ति - निवृत्ति करने वाले जीव । अथवा सम्यग्ज्ञान रूपी संज्ञा जिनको हो, उन्हें संज्ञी कहते हैं । जिनके लब्धि या उपयोग रूप मन पाया जाये उन जीवों को संज्ञी कहते हैं । संशोधत--संज्ञी जीवों का श्रुत । संभव सत्ता -- किसी कर्म प्रकृति की अमुक समय में सत्ता न होने पर भी भविष्य में सत्ता की संभावना मानना । संयम - सावद्य योगों -- पापजनक प्रवृत्तियों से उपरत हो जाना; अथवा पापजनक व्यापार — आरम्भ - समारम्भ से आत्मा को जिसके द्वारा संयमितनियमित किया जाता है उसे संयम कहते हैं अथवा पाँच महाव्रतों रूप यमों के पालन करने या पाँच इन्द्रियों के जय को संयम कहते हैं । संवर- - आस्रव का निरोध संवर कहलाता है । - संवासानुमति -- पुत्र आदि अपने सम्बन्धियों के पापकर्म में प्रवृत्त होने पर भी उन पर सिर्फ ममता रखना । संवेध - परस्पर एक समय में अविरोध रूप से मिलना । संस्थान नामकर्म --- जिस कर्म के उदय से शरीर के भिन्न-भिन्न शुभ या अशुभ आकार बनें । संसारी जीव-जो अपने यथायोग्य द्रव्यप्राणों और ज्ञानादि भावप्राणों से युक्त होकर नरकादि चतुर्गति रूप संसार में परिभ्रमण करते हैं । संहनन नामकर्म -- जिस कर्म के उदय से हाड़ों का आपस में जुड़ जाना अर्थात् रचना विशेष होती है । सांशयिक मिथ्यात्व — समीचीन और असमीचीन दोनों प्रकार के पदार्थों में से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy