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________________ पारिभाषिक शब्द-कोष : वेदक सम्यक्त्व-क्षायोपशमिक सम्यक्त्व में विद्यमान जीव सम्यक्त्व मोहनीय के अन्तिम पुद्गल के रस का अनुभव करता है उस समय के उसके परिणाम । वेदना समुद्घात-तीव्र वेदना के कारण होने वाला समुद्घात । वेदनीय कर्म-जिसके उदय से जीव को सांसारिक इन्द्रियजन्य सुख-दुःख का अनुभव हो। वैक्रिय अंगोपांग नामकर्म-जिस कर्म के उदय से वैक्रिय शरीर रूप परिणत पुद्गलों से अंगोपांग रूप अवयव निर्मित होते हैं । वैकियकाययोग-वैक्रिय शरीर के द्वारा होने वाले वीर्य-शक्ति के व्यापार को वैक्रिय काययोग कहते हैं । अथवा वैक्रिय शरीर के अवलम्बन से उत्पन्न हुए परिस्पन्द द्वारा जो प्रयत्न होता है, उसे वैक्रियकाययोग कहा जाता है। वैक्रियकार्मणबंधन नामकर्म-जिस कर्म के उदय से वैक्रिय शरीर पुद्गलों का __कार्मण पुद्गलों के साथ सम्बन्ध हो । बैंक्रियतैनसकार्मणबंधन नामकर्म-जिस कर्म के उदय से वैक्रिय शरीर पुद्गलों का तेजस-कार्मण पुद्गलों के साथ सम्बन्ध हो । वैक्रियतंजसबंधन नामकर्म--जिस कर्म के उदय से वैक्रिय शरीर पुद्गलों का तेजस पुद्गलों के साथ सम्बन्ध हो । वैक्रियमिश्र काय-वैक्रिय शरीर की उत्पत्ति प्रारम्भ होने के प्रथम समय से लगाकर शरीर पर्याप्ति पूर्ण होने तक अन्तर्मुहूर्त के मध्यवर्ती अपूर्ण शरीर को क्रियमिश्र काय कहते हैं । बैंक्रियमिश्र काययोग- वैक्रिय और कार्मण तथा वैक्रिय और औदारिक इन दो दो शरीरों के मिश्रत्व के द्वारा होने वाला वीर्य-शक्ति का व्यापार । वैक्रियर्वनियबंधन नामकर्म-जिस कर्म के उदय से पूर्वगृहीत वैक्रिय शरीर पुद्गलों के साथ गृह्यमाण वैक्रिय शरीर पुद्गलों का आपस में मेल होता है। वैक्रिय वर्गणा-वे वर्गणाएँ जिनसे वैक्रिय शरीर बनता है। बैंक्रिय शरीर-जिस शरीर के द्वारा छोटे-बड़े, एक-अनेक, विविध विचित्र रूप बनाने की शक्ति प्राप्त हो तथा जो शरीर वैक्रिय शरीर वर्गणाओं से निष्पन्न हो। For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org ब" Jain Education International
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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