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________________ पारिभाषिक शब्द - कोष अनाहारक - ओज, लोम और कवल इनमें से किसी भी प्रकार के आहार को न करने वाले जीव अनाहारक होते हैं । अनिवृत्तिकरण - वह परिणाम जिसके प्राप्त होने पर जीव अवश्यमेत्र सम्यक्त्व प्राप्त करता है । १२ अनिवृत्तिबावर संपराय गुणस्थान- वह है जिसमें बादर (स्थूल ) संपराय ( कषाय ) उदय में हो तथा समसमयवर्ती जीवों के परिणामों में समानता हो । अनुत्कृष्ट बंध - एक समय कम उत्कृष्ट स्थिति बंध से लेकर जघन्य स्थिति बंध तक के सभी बंध । अनुगामी अवधिज्ञान - जो अवधिज्ञान अपने उत्पत्ति क्षेत्र को छोड़कर दूसरे स्थान पर चले जाने पर भी विद्यमान रहता है । अनुभवयोग्या स्थिति- -अबाधा काल रहित स्थिति । अनुभाग बंध - कर्मरूप गृहीत पुद्गल परमाणुओं की फल देने की शक्ति व उसकी तीव्रता, मंदता का निश्चय करना अनुभाग बंध कहलाता है । अनुयोग श्रत - सत् आदि अनुयोगद्वारों में से किसी एक के द्वारा जीवादि पदार्थों को जानना । अनुयोगसमास भूत - एक से अधिक दो, तीन आदि अनुयोगद्वारों का ज्ञान । अन्तरकरण -- एक आवली या अन्तर्मुहूर्त प्रमाण नीचे और ऊपर की स्थिति को छोड़कर मध्य में से अन्तर्मुहूर्त प्रमाण दलिकों को उठाकर उनका बंधने वाली अन्य सजातीय प्रकृतियों में प्रक्षेप करने का नाम अन्तरकरण है । इस अन्तरकरण के लिये जो क्रिया की जाती है और उसमें जो काल लगता है उसे भी उपचार से अन्तरकरण कहते हैं । अन्तराय - ज्ञानाभ्यास के साधनों में विघ्न डालना, विद्यार्थियों के लिये प्राप्त होने वाले अभ्यास के साधनों की प्राप्ति न होने देना आदि अन्तराय कहलाता है । अन्तराय कर्म- जो कर्म आत्मा की दान, लाभ, भोग, उपभोग, वीर्य रूप शक्तियों का घात करता है । अथवा दानादि में अन्तराय रूप हो उसे अन्तराय कर्म कहते हैं । अन्तःकोड़ाकोड़ी - कुछ कम एक कोड़ाकोड़ी ! अपर्यवसित श्रुत- वह श्रुत जिसका अन्त न हो । अपर्याप्त अपर्याप्त नामकर्म के उदय वाले जीव । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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