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परिशिष्ट - २
११
अननुगामी अवधिज्ञान - अपने उत्पत्ति स्थान में स्थित होकर पदार्थ को जानने
वाला किन्तु उत्पत्ति स्थान को छोड़ देने पर न जानने वाला अवधिज्ञान । अनन्तानन्ताणु वर्गणा - अनन्तानन्त प्रदेशी स्कन्धों की वर्गणा । अनन्ताणु वर्गणा - अनन्त प्रदेशी स्कन्धों की वर्गणा ।
अनन्तानुबंधी कषाय - सम्यक्त्व गुण का घात करके जीव को अनंत काल तक संसार में परिभ्रमण कराने वाली उत्कट कषाय । अनपवर्तनीय आयु- जो आयु किसी भी कारण से कम न हो। जितने काल तक के लिए बाँधी गई हो, उतने काल तक भोगी जाये ।
अनभिगृहीत मिध्यात्व - परोपदेश निरपेक्ष- स्वभाव से होने वाला पदार्थों का अयथार्थ श्रद्धान |
अनवस्थित अवधिज्ञान - जो जल की तरंग के समान कभी घटता है, कभी बढ़ता है, कभी आविर्भूत हो जाता है और कभी तिरोहित हो जाता है । अनवस्थित पल्य--आगे-आगे बढ़ते जाने वाला होने से नियत स्वरूप के अभाव
वाला पल्य ।
अनाकारोपयोग - सामान्य विशेषात्मक वस्तु के सामान्य धर्म का अवबोध करने वाले जीव का चैतन्यानुविधायी परिणाम |
अनादि - अनन्त - जिस बंध था उदय की परम्परा का प्रवाह अनादि काल से निराबाध गति से चला आ रहा है, मध्य में न कभी विच्छित हुआ है और न आगे कभी होगा, ऐसे बंध या उदय को अनादि अनंत कहते हैं ।.. अनादि बंध- जो बंध अनादि काल से सतत हो रहा है ।
अनादि श्रुत - जिस श्रुत की आदि न हो, उसे अनादि श्रुत कहते हैं ।
अनादि- सान्त - जिस बंध या उदय की परम्परा का प्रवाह अनादिकाल से लेकिन आगे व्युच्छिन्न हो जायेगा,
बिना व्यवधान के चला आ रहा है वह अनादि - सान्त है ।
अनावेय नामकर्म --- जिस कर्म के उदय से
जीव का युक्तियुक्त अच्छा वचन भी
अनादरणीय अग्राह्य माना और समझा जाता है ।
अनभिग्रहिक मिथ्यात्व - सत्यासत्य की परीक्षा किये बिना ही सब पक्षों को
बराबर समझना ।
अनाभोग मिथ्यात्व -- अज्ञानजन्य अतत्त्व रुचि ।
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