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परिशिष्ट : १ षष्ठ कर्मग्रन्थ की मूल गाथाएँ . सिद्धपएहिं महत्थं बन्धोदयसन्तपयडिठाणाणं । वोच्छं सुण संखेवं नीसंदं दिट्ठिवायस्स ॥११॥ कइ बंधंतो वेयइ कइ कइ वा पयडिसंतठाणाणि । मूलुत्तरपगईसुं भंगविगप्पा उ बोधव्वा ॥२॥ अट्ठविहसत्तछब्बंधगेसु अद्वैव उदयसंताई। एगविहे तिविगप्पो एगविगप्पो अबंधम्मि ॥३॥ सत्तट्ठबंधअठ्ठदयसंत तेरससु जीवठाणेसु । एगम्मि पंच भंगा दो भंगा हुंति केवलिणो ॥४॥ अट्ठसु एगविगप्पो छस्सु वि गुणसंनिएसु दुविगप्पो। पत्तेयं पत्तेयं बं धोदयसंतकम्माणं ॥५॥ बंधोदयसंतंसा नाणावरणंतराइए पंच। बंधोवरमे वि तहा उदसंता हुंति पंचेव ॥६।। बंधस्स य संतस्स य पगइट्ठाणाई तिन्नि तुल्लाइं। उदयट्ठाणाई दुवे चउ पणगं दंसणावरणे ॥७॥ बीयावरणे नवबंधगेसु चउ पंच उदय नव संता। छच्चउबंधे चेवं चउ बन्धुदए छलसा य ।।८।। उवरयबंधे चउ पण नवंस चउरुदय छच्च चउसंता । वेयणियाउयगोए विभज्ज मोहं परं वोच्छं ॥६॥ बावीस एक्कबीसा, सत्तरसा तेरसेव नव पंच । चउ तिग दुगं च एक्कं बंधट्ठाणाणि मोहस्स ॥१०॥ एक्कं व दो व चउरो एत्तो एक्काहिया दसुक्कोसा। ओहेण मोहणिज्जे उदयट्ठाणा नव हवंति ॥११॥
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