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________________ षष्ठ कर्मग्रन्थ ४३६ बाकी हैं, ऐसे जीव के, खीयंति-क्षय होती है, सबिवागेयरमामाविपाकरहित नामकर्म की प्रकृतियाँ, नोयागोयं-नीच गोत्र और एक वेदनीय, पि-मी, तस्थेव-वहीं पर । गाथार्थ-अयोगिकेवली अवस्था में दो अंतिम समय जिसके बाकी हैं ऐसे जीव के देवगति के साथ बंधने वाली प्रकृतियों का क्षय होता है तथा विपाकरहित जो नामकर्म की प्रकृतियाँ हैं तथा नीच गोत्र और किसी एक वेदनीय का भी वहीं क्षय होता है। विशेषार्थ-गाथा में अयोगिकेवली गुणस्थान के उपान्त्य समय में क्षय होने वाली प्रकृतियों का निर्देश किया है। जैसा कि पहले बता आये हैं कि अयोगिकेवली अवस्था में जिन प्रकृतियों का उदय नहीं होता है, उनकी स्थिति अयोगिकेवली गुणस्थान के काल से एक समय कम होती है। इसीलिये उनका उपान्त्य समय में क्षय हो जाता है । उपान्त्य समय में क्षय होने वाली प्रकृतियों का कथन पहले नहीं किया गया है, अत: इस गाथा में निर्देश किया है कि जिन प्रकृतियों का देवगति के साथ बंध होता है उनकी तथा नामकर्म की जिन प्रकृतियों का अयोगिअवस्था में उदय नहीं होता उनकी और नीच गोत्र व किसी एक वेदनीय की उपान्त्य समय में सत्ता का विच्छेद हो जाता है। देवगति के साथ बंधने वाली प्रकृतियों के नाम इस प्रकार हैंदेवगति, देवानुपूर्वी, वैक्रिय शरीर, वैक्रिय बंधन, वैक्रिय संघात, वैक्रिय अंगोपांग, आहारक शरीर, आहारक बंधन, आहारक संघात, आहारक अंगोपांग, यह दस प्रकृतियां हैं । गाथा में अनुदय रूप से संकेत की गई नामकर्म की पैंतालीस प्रकृतियां यह हैं-औदारिक शरीर, औदारिक बंधन, औदारिक संघात, तेजस शरीर, तेजस बन्धन, तेजस संघात, कार्मण शरीर, कार्मणJain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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