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________________ ४३० सप्ततिका प्रकरण और एक समय अधिक एक आवलिका प्रमाणकाल के शेष रहने तक उसका वेदन करता है। उसके बाद तीसरी किट्टी की दूसरी स्थिति में स्थित दलिक का अपकर्षण करके प्रथम स्थिति करता है और एक समय. अधिक एक आवलिका प्रमाणकाल के शेष रहने तक उसका वेदन करता है तथा इन तीनों किट्टियों के वेदन काल के समय उपरितन स्थितिगत दलिक का गुणसंक्रम के द्वारा प्रति समय संज्वलन मान में निक्षेप करता है और जब तीसरी किट्टी के वेदन का अंतिम समय प्राप्त होता है तब संज्वलन क्रोध के बंध, उदय और उदीरणा का एक साथ विच्छेद हो जाता है। इस समय इसके एक समय कम दो आवलिका प्रमाणकाल के । द्वारा बंधे हुए दलिकों को छोड़कर शेष का अभाव हो जाता है। तत्पश्चात् मान की प्रथम किट्टी की दूसरीस्थिति में स्थित दलिक का अपकर्षण करके प्रथमस्थिति करता है और एक अन्तर्मुहूर्त काल तक उसका वेदन करता है तथा मान की प्रथम किट्टी के वेदनकाल के भीतर ही एक समय कम दो आवलिका प्रमाणकाल के द्वारा संज्वलन क्रोध के बंधकाल प्रमाण क्रमण भी करता है। यहाँ दो समय कम दो आवलिका काल तक गुणसंक्रम होता है और अंतिम समय में सर्व संक्रम होता है। इस प्रकार मान की प्रथम किट्टी का एक समय अधिक एक आवलिका शेष रहने तक वेदन करता है और तत्पश्चात् मान की दूसरी किट्टी की दूसरी स्थिति में स्थित दलिक का अपकर्षण करके प्रथमस्थिति करता है और एक समय अधिक तक आवलिका काल के शेष रहने तक उसका वेदन करता है । तत्पश्चात् तीसरी किट्टी की दूसरीस्थिति में स्थित दलिक का अपकर्षण करके प्रथमस्थिति करता है और एक समय अधिक एक आवलिका काल के शेष रहने तक उसका वेदन करता है। इसी समय मान के बंध, उदय और www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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