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________________ ४०६ सप्ततिका प्रकरण दर्शनमोहनीय की उपशमना दर्शनमोहनीय की तीन प्रकृतियों की उपशमना के विषय में यह नियम' है कि मिथ्यात्व, सम्यमिथ्यात्व और सम्यक्त्व यह दर्शन मोहनीय की तीन प्रकृतियाँ हैं। उनमें से मिथ्यात्व का उपशम तो मिथ्यादृष्टि और वेदक सम्यग्दृष्टि जीव करते हैं, किन्तु सम्यक्त्व और सम्यमिथ्यात्व इन दो प्रकृतियों का उपशम वेदक सम्यग्दृष्टि जीव ही करते हैं । इसमें भी चारों गति का मिथ्यादृष्टि जीव जब प्रथम सम्यक्त्व को उत्पन्न करता है तब मिथ्यात्व का उपशम करता है। मिथ्यात्व के उपशम करने की विधि पूर्व में बताई गई अनन्तानुबंधी चतुष्क के उपशम के समान जानना चाहिये किन्तु इतनी विशेषता है कि इसके अपूर्वकरण में गुणसंक्रम नहीं होता किन्तु स्थितिघात, रसघात, स्थितिबंध और गुणश्रेणि, ये चार कार्य होते हैं। १ दिगम्बर कर्मग्रन्थों में इस विषय के निर्देश भाव यह है कि मिथ्यादृष्टि एक मिथ्यात्व का, मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्व इन दोनों का या मिथ्यात्व, सम्यमिथ्यात्व और सम्यक्त्व, इन तीनों का तथा सम्यग्दृष्टि द्वितीयोपशम सम्यक्त्व की प्राप्ति के समय तीनों का उपशम करता है। जो जीव सम्यक्त्व से च्यूत होकर मिथ्यात्व में जाकर वेदककाल का उल्लंघन कर जाता है, वह यदि सम्यक्त्व की उद्वलना होने के काल में ही उपशम सम्यक्त्व को प्राप्त होता है तो उसके तीनों का उपशम होता है। जो जीव सम्यक्त्व की उद्वलना के बाद सम्यगमिथ्यात्व को उद्वलना होते समय यदि उपशमसम्यक्त्व को प्राप्त करता है तो उसके मिथ्यात्व और सम्यमिथ्यात्व इन दो का उपशम होता है और जो मोहनीय की छब्बीस प्रकृतियों की सत्ता वाला मिथ्यादृष्टि होता है, उसके एक मिथ्यात्व का ही उपशम होता है। २ तत्र मिथ्यात्वस्योपशमना मिथ्यादृष्टेर्वेदकसम्यग्दृष्टेश्च । सम्यक्त्व-सम्यग्मिथ्यात्वयोस्तु वेदकसम्यग्दृष्टेरेव । -सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० २४६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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