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षष्ठ कर्मग्रन्थ
सत्ता रूप सब कर्म प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश के भेद से चार-चार प्रकार के हैं। ___ इन चारों प्रकार रूप कर्मों को किन में और किसके द्वारा घटित करने के लिए गाथा में संकेत किया है कि-'गइआइएहिं अट्ठसु'गति आदि चौदह मार्गणाओं के द्वारा आठ अनुयोगद्वारों में इनका चिन्तन करना है। ___ मार्गणा शब्द का अर्थ अन्वेषण करना है । अत: मार्गणा का यह . अर्थ हुआ कि जिनके द्वारा या जिनमें जीवों का अन्वेषण किया जाता है, उन्हें मार्गणा कहते हैं। मार्गणा के चौदह भेद इस प्रकार हैं
गइ इंदिए य काए जोए वेए कसाय नाणे य।
संजम दसण लेसा भव सम्मे सन्नि आहारे ॥ १ गति, २ इन्द्रिय, ३ काय, ४ योग, ५ वेद, ६ कषाय, ७ ज्ञान, ८ संयम, ६ दर्शन, १० लेश्या, ११ भव्यत्व, १२ सम्यक्त्व, १३ संज्ञी और १४ आहार । इनके १४ भेदों के उत्तर भेद ६२ होते हैं। ___ वर्णन की यह परम्परा है कि जीव सम्बन्धी जिस किसी भी अवस्था का वर्णन करना है, उसका पहले सामान्य रूप से वर्णन किया जाता है और उसके बाद उसका विशेष चिन्तन चौदह मार्गणाओं द्वारा आठ अनुयोगद्वारों में किया जाता है। अनुयोगद्वार यह अधिकार का पर्यायवाची नाम है और विषय-विभाग की दृष्टि से ये अधिकार हीनाधिक भी किये जा सकते हैं। परन्तु मार्गणाओं का विस्तृत विवेचन मुख्य रूप से आठ अधिकारों में ही पाया जाता है, अतः मुख्य रूप से आठ ही लिये जाते हैं। इन आठ अधिकारों के नाम इस प्रकार हैं
संत पयपरूवणया दव्यपमाणंच खित्तफूसणाय। कालो य अंतरं भाग भाव अप्पा बहुं चेव ॥
सत पचन
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