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________________ षष्ठ कर्मग्रन्थ ३६३ स्थान होते हैं तथा पंचेन्द्रियों के २०, २१, २५, २६, २७, २८, २९, ३०, ३१, ६ और प्रकृतिक, ये ग्यारह उदयस्थान होते हैं । सत्तास्थान कुल बारह हैं, जिनमें से एकेन्द्रियों और विकलेन्द्रियों में से प्रत्येक के ६२, ८, ८६, ८० और ७८ प्रकृतिक, ये पाँच-पाँच सत्तास्थान हैं तथा पंचेन्द्रियों के बारहों ही सत्तास्थान होते हैं । इस प्रकार एकेन्द्रिय आदि में से प्रत्येक के बंध, उदय और सत्ता स्थानों को बतलाकर अब इनके संवेध का विचार करते हैं । एकेन्द्रिय -- २३ प्रकृतियों का बंध करने वाले एकेन्द्रियों के प्रारम्भ के चार उदयस्थानों में से प्रत्येक उदयस्थान में पाँच-पाँच सत्तास्थान होते हैं तथा २७ प्रकृतिक उदयस्थान में ७८ को छोड़कर शेष चार सत्तास्थान होते हैं । इसी प्रकार २५, २६, २६ और ३० प्रकृतिक बंधस्थानों के भी उदयस्थानों की अपेक्षा सत्तास्थान जानना चाहिये । इस प्रकार २३ प्रकृतिक बंधस्थान में पांच उदयस्थानों की अपेक्षा प्रत्येक में २४ सत्तास्थान होते हैं, जिनका कुल जोड़ १२० है । ये सब सत्तास्थान केन्द्र के हैं । बंधस्थान २३ प्रकृतिक २५ प्रकृतिक भंग ४ २५ Jain Education International उदयस्थान a x x x x २१ २४ २५ २६ २७ a x x w g २१ २४ २५ २६ भंग ५ २,८८,८६,८०, ७८ ११ ६२,८८, ८६, ८०, ७८ ७ ६२,८८,८६,८०, ७८ १३ १२, ८८, ८६, ८०, ७८ ६ ६२, ८८, ८६, ८० ५ ११ ७ १३ ६ सत्तास्थान ६२,८८,८६,८०, ७८ ६२,८८,८६,८०, ७८ ६२, ८६, ८६, ८०, ७८ ६२,८८,८६,८०, ७८ ६२,८५,६६, ८० २७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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