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सप्ततिका प्रकरण
शब्दार्थ - एग विगलविय सगले - एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय और सकलेन्द्रिय ( पंचेन्द्रिय) में, पण पंच य अट्ठ-पांच, पांच और आठ बंधठाणाणि - बंधस्थान, पण छक्केक्कार-पांच, छह और ग्यारह, उदया -- उदयस्थान, पण-पण बारस - पाँच, पाँच और बारह, य-और, संताणि - सत्तास्थान ।
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गाथार्थ -- एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय में अनुक्रम से पांच पांच और आठ बंधस्थान; पांच, छह और ग्यारह उदयस्थान तथा पांच, पांच और बारह सत्तास्थान होते हैं । विशेषार्थ - पूर्व गाथा में गतिमार्गणा के चारों भेदों में नामकर्म के बंध आदि स्थानों और उनके संवेध का कथन किया गया था । इस गाथा में इन्द्रियमार्गणा के एकेन्द्रिय आदि पाँच भेदों में बंधादि स्थानों का निर्देश करते हुए अनुक्रम से बताया है कि 'पण पंच य अट्ठ बंधठाणाणि' एकेन्द्रिय के पांच, विकलेन्द्रिय ( द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय) के पांच तथा पंचेन्द्रिय के आठ बंधस्थान हैं। इसी प्रकार अनुक्रम से उदयस्थानों का निर्देश करने के लिये कहा है कि - 'पण छक्केक्कारुदया' - एकेन्द्रिय के पाँच, विकलेन्द्रियों के छह और पंचेन्द्रियों के ग्यारह उदयस्थान होते हैं तथा 'पण पण बारस य संताणि' - एकेन्द्रिय के पांच, विकलेन्द्रियों के पांच और पंचेन्द्रियों के बारह सत्तास्थान हैं। इन सब बंध आदि स्थानों का स्पष्टीकरण नीचे किया जा रहा है ।
कुल बंधस्थान आठ हैं, उनमें से एकेन्द्रियों के २३, २५, २६, २ε और ३१ प्रकृतिक, ये पांच बंधस्थान हैं। विकलेन्द्रियों में से प्रत्येक के भी एकेन्द्रिय के लिये बताये गये अनुसार ही पांच-पांच बंधस्थान हैं तथा पंचेन्द्रियों के २३ आदि प्रकृतिक आठों बंधस्थान हैं ।
उदयस्थान बारह है । उनमें से एकेन्द्रियों के २१, २४, २५, २६ और २७ प्रकृतिक, ये पांच उदयस्थान होते हैं । विकलेन्द्रियों में से प्रत्येक के २१, २६, २८, २९, ३० और ३१ प्रकृतिक, ये छह-छह उदय
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