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________________ ( ३६ ) ३४१ ३४५ प्रमत्तविरत गुणस्थान में नामकर्म के संवेध भंगों का दर्शक विवरण . ३३८ अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में नामकर्म के बंधादि स्थानों और संवेध भंगों का विचार ३३८ अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में संवेध भंगों का दर्शक विवरण ३४० अपूर्वकरण गुणस्थान में नामकर्म के बंधादिस्थानों व संवेध भंगों का विचार अपूर्वकरण गुणस्थान में संवेध भंगों का दर्शक विवरण ३४३ अनिवृत्तिबादर, सूक्ष्मसंपराय गुणस्थानों में नामकर्म के बंधादि स्थानों व संवेध भंगों का विचार उपशान्तमोह, क्षीणमोह गुणस्थानों में नामकर्म के बंधादि स्थानों व संवेध भंगों का विचार सयोगिकेवली गुणस्थान में नामकर्म के उदय व सत्ता स्थानों का विचार व उनके संवेध भंगों का दर्शक विवरण ३४६ अयोगिकेवली गुणस्थान में नामकर्म के उदय व सत्ता स्थानों के संवेध का विचार व उनका दर्शक विवरण ३४७ गाथा ५१ ३४८-३६१ गतिमार्गणा में नामकर्म के बंधादि स्थानों का विचार ३४८ नरक आदि गतियों में बन्धस्थान ३४६ नरकगति में संवेध भंगों का विचार नरकगति में संवेध भंगों का दर्शक विवरण तिर्यंचगति में संवेध भंगों का विचार तिर्यंचगति में संवेध भंगों का दर्शक विवरण मनुष्यगति में संवेध भंगों का विचार मनुष्यगति में संवेध भंगों का दर्शक विवरण ३५७ देवगति में संवेध भंगों का विचार ३६० देवगति में संवेध भंगों का दर्शक विवरण ३५० ३५२ ३५६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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