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मार्गणाओं में बन्धादिस्थान
दो छक्कsटु चउक्कं पण नव एक्कार छक्कगं उदया । नेरइआइसु संता ति पंच एक्कारस चउवकं ॥ ५१ ॥
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सप्ततिका प्रकरण
शब्दार्थ - दो छक्कल चउक्कं-दो, छह, आठ और चार, पण नय एक्कार छक्कगं पांच, नौ, ग्यारह और छ, उदयाउदयस्थान, नेरइआइसु— नरकं आदि गतियों में, संत्ता-सत्ता, ति पंच एक्कारस चक्कं तीन, पांच, ग्यारह और चार ।
गाथार्थ - नारकी आदि (नारक, तिर्यंच, मनुष्य और देव) के क्रम से दो, छह, आठ और चार बन्धस्थान, पाँच, नौ, ग्यारह और छह उदयस्थान तथा तीन, पांच, ग्यारह और चार सत्तास्थान होते हैं ।
विशेषार्थ - इस गाथा में किस गति में कितने बन्ध, उदय और सत्तास्थान होते हैं, इसका निर्देश किया गया । नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव ये चार गतियां हैं और इसी क्रम का अनुसरण करके गाथा में पहले बन्धस्थानों की संख्या बतलाई है - 'दो छक्कऽट्ठ चउक्क' - अर्थात् नरकगति में दो, तिर्यंचगति में छ, मनुष्यगति में आठ और देवगति में चार बन्धस्थान हैं। उदयस्थानों का निर्देश करते हुए कहा है - 'पण नव एक्कार छक्कगं उदया। यानी पूर्वोक्त अनुक्रम से पांच, नौ, ग्यारह और छह उदयस्थान हैं तथा - 'ति पंच एक्कारस चउक्क'
१ तुलना कीजिये :
दोछक्कचक्कं णिरयादिसु णामबंधठाणाणि । पण व एगारपणयं तिपंचवारसचउक्कं च ॥
- गो० कर्मकांड, गा० ७१० कर्मग्रन्थ में मनुष्यगति में ग्यारह सत्तास्थान हैं और गो० कर्मकांड में १२ सत्तास्थान तथा देवगति में कर्मग्रन्थ में ६ और गो० कर्मकांड में ५ उदयस्थान बतलाये हैं । इतना दोनों में अंतर है ।
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