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________________ षष्ठ कर्मग्रन्थ ३४१ मंग उदयस्थान भंग सत्तास्थान बंधस्थान ३० प्रकृतिक प्रकृतिक ५६२ (८) अपूर्वकरण गुणस्थान ___ आठवें अपूर्वकरण गुणस्थान में बंध आदि स्थान इस प्रकार हैं'पणगेग चउ' अर्थात् पाँच बंधस्थान, एक उदयस्थान और चार सत्तास्थान । इनमें से पांच बंधस्थान २८, २९, ३०, ३१ और १ प्रकृतिक हैं। इनमें से प्रारम्भ के चार बंधस्थान तो सातवें अप्रमत्तसंयत गुणस्थान के समान जानना चाहिये, किन्तु जब देवगतिप्रायोग्य प्रकृतियों का बंधविच्छेद हो जाता है तब सिर्फ एक यश:कीर्ति नाम का ही बध होता है, जिससे यहाँ १ प्रकृतिक बंधस्थान भी होता है। यहाँ उदयस्थान एक ३० प्रकृतिक ही होता है। जिसके वज्रऋषभनाराच संहनन, छह संस्थान, सुस्वर-दुस्वर और दो विहायोगति के विकल्प से २४ भंग होते हैं। किन्तु कुछ आचार्यों के मत से उपशमणि की अपेक्षा अपूर्वकरण में केवल वज्रऋषभनाराच संहनन का उदय न होकर प्रारम्भ के तीन संहननों में से किसी एक का उदय होता है। अत: उनके मत से यहाँ पर ७२ भंग होते हैं। इसी प्रकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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