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________________ षष्ठ कर्मग्रन्थ (३) मिश्र गुणस्थान दूसरे सासादन गुणस्थान के बंध आदि स्थानों का निर्देश करने के बाद अब तीसरे मिश्र गुणस्थान के बंध आदि स्थानों का कथन करते हैं । मिश्र गुणस्थान में - दुग तिग दुगं' - दो बंधस्थान, तीन उदयस्थान और दो सत्तास्थान हैं। जिनका विवरण इस प्रकार है कि २८ और. २६ प्रकृतिक, ये बंधस्थान होते हैं। इनमें से २८ प्रकृतिक बंधस्थान तिर्यंच और मनुष्यों के होता है, क्योंकि ये मिश्र गुणस्थान में देवगति के योग्य प्रकृतियों का बंध करते हैं । इसके यहाँ ८ भंग होते हैं । ३२७ २६ प्रकृतिक बंधस्थान देव और नारकों के होता है । क्योंकि वे मिश्र गुणस्थान में मनुष्यगति के योग्य प्रकृतियों का बंध करते हैं । इसके भी ८ भंग होते हैं । दोनों स्थानों में ये भंग स्थिर अस्थिर, शुभअशुभ और यशः कीर्ति अयशः कीर्ति के विकल्प से प्राप्त होते हैं । २x२x२=८ शेष भंग प्राप्त नहीं होते हैं क्योंकि शेष शुभ परावर्तमान प्रकृतियाँ ही सम्यग् मिथ्यादृष्टि जीव बाँधते हैं । यहाँ बंधस्थानों का कथन करने के बाद अब उदयस्थान बतलाते हैं कि २९, ३० और ३१ प्रकृतिक ये तीन उदयस्थान हैं । २६ प्रकृतिक उदयस्थान देव और नारकों के होता है। इस स्थान के देवों के ८ और नारकों के १ इस प्रकार भंग होते हैं । ३० प्रकृतिक उदयस्थान तिर्यंच व मनुष्यों के होता है । इसमें तिर्यंचों के ११५२ और मनुष्यों के ११५२ भंग होते हैं जो कुल मिलाकर २३०४ हैं । ३१ प्रकृतिक उदयस्थान तिर्यंच पंचेन्द्रियों के ही होता है । इसके यहाँ कुल मिलाकर ११५२ भंग होते हैं । इस प्रकार मिश्र गुणस्थान में तीनों उदयस्थानों के ε+२३०४+११५२ = ३४६५ भंग होते हैं । मिश्र गुणस्थान में दो सत्तास्थान हैं - ६२ और प्रकृतिक । इस प्रकार मिश्र गुणस्थान के बंध, उदय और सत्ता स्थान क्रमशः २, ३ और २ समझना चाहिये | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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