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________________ षष्ठ कर्मग्रन्थ विकलेन्द्रियों के ६, तिर्यंच पंचेन्द्रियों के ५७६, वैक्रिय तिर्यंच पंचेन्द्रिय के १६, मनुष्यों के ५७६, वैक्रिय मनुष्यों के ८, देवों के १६ और नारकों का १ । कुल मिलाकर ये भंग ६+५७६ + १६+५७६+८+१६+१= ११९६ होते हैं। २६ प्रकृतिक उदयस्थान के १७८१ भंग हैंविकलेन्द्रियों के १२, तिर्यंच पंचेन्द्रियों के ११५२, वैक्रिय तिर्यंच पंचेन्द्रियों के १६, मनुष्यों के ५७६, वैक्रिय मनुष्यों के ८, देवों के १६, और नारकों का १ । कुल मिलाकर ये सब भंग १७८१ होते हैं । ३० प्रकृतिक उदयस्थान के २६१४ भंग हैं—विकलेन्द्रियों के १८, तिर्यंच पंचेन्द्रियों के १७२८, वैक्रिय तिर्यंच पंचेन्द्रिय के ८, मनुष्यों के ११५२, देवों के ८। इनका जोड़ १८+१७२८+८+११५२ +८=२६१४ होता है। ३१ प्रकृतिक उदयस्थान के भंग ११६४ होते हैं-विकलेन्द्रियों के १२, तिर्यंच पंचेन्द्रियों के ११५२ जो कुल मिलाकर ११६४ होते हैं। इस प्रकार मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में २१, २४, २५, २६, २७, २८, २६, ३० और ३१ प्रकृतिक, यह नौ उदयस्थान हैं और उनके क्रमशः ४१, ११, ३२, ६००, ३१, ११६६, १७८१, २६१४ और ११६४ भंग हैं। इन भंगों का कुल जोड़ ७७७३ है। वैसे तो इन उदयस्थानों के कुल भंग ७७६१ होते हैं लेकिन इनमें से केवली के ८, आहारक साधु के ७, और उद्योत सहित वैक्रिय मनुष्य के ३, इन १८ भंगों को कम कर देने पर ७७७३ भंग ही प्राप्त होते हैं। मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में छह सत्तास्थान हैं। जो ६२, ८६, ८८ ८६, ८० और ७८ प्रकृतिक हैं । मिथ्यात्व गुणस्थान में आहारक-चतुष्क और तीर्थंकर नाम की सत्ता एक साथ नहीं होती है, जिससे ६३ प्रकृतिक सत्तास्थान यहाँ नहीं बताया है। ६२ प्रकृतिक सत्तास्थान चारों गति के मिथ्यावृष्टि जीवों के संभव है, क्योंकि आहारकचतुष्क की सत्ता वाला किसी भी गति में उत्पन्न होता है । ८९ प्रकृतिक सत्तास्थान सबके नहीं होता है किन्तु जो नरकायु का बंध करने के पश्चात् वेदक www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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