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षष्ठ कर्मग्रन्थ २१, २ और १ प्रकृतिक, ये पांच सत्तास्थान होते हैं। इस प्रकार यहाँ कुल २७ सत्तास्थान हुए।
सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान में बंध के अभाव में एक प्रकृतिक उदयस्थान तथा २८, २४, २१ और १ प्रकृतिक, ये चार सत्तास्थान होते हैं। तथा उपशान्तमोह गुणस्थान में बंध और उदय के बिना २८, २४ और २१ प्रकृतिक, ये तीन सत्तास्थान होते हैं।
किस बंधस्थान और उदयस्थान के रहते हुए कितने सत्तास्थान होते हैं, इसका विशेष विवेचन ओघ प्ररूपणा के प्रसंग में किया जा चुका है, अत: वहां से जानना चाहिये।
इस प्रकार से अब तक नामकर्म के सिवाय शेष सात कमों के बंध आदि स्थानों का गुणस्थानों में निर्देश किया जा चुका है। अब नामकर्म के संवेध भंगों का विचार करते हैं।
गुणस्थानों में नामकर्म के संबंध भंग
छण्णव छक्कं तिग सत्त दुगं दुग तिग दुगं तिगऽ चऊ । दुग छ उचउ दुग पण चउ चउ दुग चउ पणग एग चक ॥४६॥ हम एगेगमटु छउमत्थकेवलिजिणाणं । एग चऊ एग चऊ अट्ट चउ दु छक्कमुदयंसा ॥'५०।।
१ तुलना कीजिये ----
छण्णवछत्तियसगइगि दुगतिगदुग तिण्णिअट्ठचत्तारि । दुगदुगचदु दुगपणचदु चदुरेयचदू पणेयचदू ॥ एगेगमट्ट एगेगम? छदुमट्ठः केवलिजिणाणं । एगचदुरेगचदुरो दोचदु दोछक्क बंधउदयंसा ।।
-मो० कर्मकांड मा०६६३, ६६४ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
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