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________________ षष्ठ कर्मग्रन्थ ३०३ इस प्रकार मोहनीयकर्म के प्रत्येक गुणस्थान सम्बन्धी उदयस्थान विकल्प और पदवृन्दों तथा वहाँ सम्भव योग, उपयोग और लेश्याओं से गुणित करने पर उनके प्राप्त प्रमाण को बतलाने के बाद अब संवेध भङ्गों का कथन करने के लिये सत्तास्थानों का विचार करते हैं। · गुणस्थानों में मोहनीयकर्म के संवेध भङ्ग तिण्णेगे एगेगं तिग मीसे पंच चउसु नियट्टिए तिन्नि । एक्कार बायरम्मी सहमे चउ तिनि उवसंते ॥४८॥ शब्दार्थ-तिण्ण- तीन सत्तास्थान, एगे- एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में, एगे - एक में, (सासादन में), एगं-एक, तिग–तीन, मीसे-मिश्र में, पंच-पांच, चउसु-अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान आदि चार में, नियट्टिए-अपूर्वक रण में, तिन्नि-तीन, एक्कारग्यारह, बायरम्मी-अनिवृत्तिबादर में, सुहुम - सूक्ष्मसंपराय में, चउ-चार, तिन्नि-तीन, उपसंते-उपशान्त मोह में । ___गाथार्थ-मोहनीयकर्म के मिथ्यात्व गुणस्थान में तीन, सासादन में एक, मिश्र में तीन, अविरत सम्यग्दृष्टि आदि चार गुणस्थानों में से प्रत्येक में पांच-पांच, अपूर्वकरण में तीन, अनिवृत्तिबादर में ग्यारह, सूक्ष्मसंपराय में चार और . उपशान्तमोह में तीन सत्तास्थान होते हैं। विशेषार्थ-गाथा में मोहनीय कर्म के गुणस्थानों में सत्तास्थान बतलाये हैं। प्रत्येक गुणस्थान में मोहनीयकर्म के सत्तास्थानों के अन्य प्रतियों में, 'चउसु तिगऽपुव्वे' यह पाठ देखने में आता है। उक्त पाठ समीचीन प्रतीत होता है, किन्तु टीकाकार ने 'नियट्टिए तिनि' इस पाठ का अनुसरण करके टीका की है, अतः यहाँ भी यही 'नियट्टिए तिन्नि' पाठ रखा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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