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सप्ततिका प्रकरण
छह प्रकृतिक उदयस्थान में भय, जुगुप्सा और वेदक सम्यक्त्व को एक साथ मिलाने पर भी नौ प्रकृतिक उदयस्थान होता है और विकल्प नहीं होने से भंगों की एक चौबीसी प्राप्त होती है । चौथे गुणस्थान में कुल मिलाकर आठ चौबीसी होती हैं। ___'देसे पंचाइ अट्ठव'-देशविरत गुणस्थान में पांच से लेकर आठ प्रकृति पर्यन्त चार उदयस्थान हैं-पाँच, छह, सात और आठ प्रकृतिक । पाँच प्रकृतिक उदयस्थान में पाँच प्रकृतियाँ इस प्रकार हैं-प्रत्याख्यानावरण, संज्वलन क्रोधादि में से अन्यतम दो क्रोधादि, तीन वेदों में से कोई एक वेद, दो युगलों में से कोई एक युगल । यहां भङ्गों की एक चौबीसी होती है । छह प्रकृतिक उदयस्थान उक्त पाँच प्रकृतियों में भय या जुगुप्सा या वेदक सम्यक्त्व में से किसी एक को मिलाने से बनता है। इस स्थान में प्रकृतियों के तीन विकल्प. होने से तीन चौबीसी होती हैं। सात प्रकृतिक उदयस्थान के लिये पाँच प्रकृतियों के साथ भय, जुगुप्सा या भय, वेदक सम्यक्त्व या जुगुप्सा, वेदक सम्यक्त्व को एक साथ मिलाया जाता है। यहाँ भी तीन विकल्पों के कारण भङ्गों की तीन चौबीसी जानना चाहिये । पूर्वोक्त पाँच प्रकृतियों के साथ भय, जुगुप्सा और वेदक सम्यक्त्व को युगपत् मिलाने से आठ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। प्रकृतियों का विकल्प न होने से भङ्गों की एक चौबीसी होती है।।
पाँचवें देशविरत गुणस्थान के अनन्तर छठे, सातवें प्रमत्तविरत और अप्रमत्तविरत गुणस्थानों का संकेत करने के लिये गाथा में 'विरए खओवसमिए' पद दिया है जिसका अर्थ क्षायोपशमिक विरत होता है। क्योंकि क्षायोपशमिक विरत, यह संज्ञा इन दो गुणस्थानों की ही होती है। इसके आगे के गुणस्थानों के जीवों को या तो उपशमक संज्ञा दी जाती है या क्षपक । उपशमश्रेणि चढ़ने वाले को उपशमक और क्षपकश्रेणि चढ़ने वाले को क्षपक कहते हैं । अतः
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