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________________ षष्ठ कर्मग्रन्थ २७५ होता है । इसमें भंगों की चौबीसी चार हैं । वे इस प्रकार हैं कि सात की एक, आठ की दो और नौ की एक । मिश्र गुणस्थान में अनन्तानुबंधी को छोड़कर शेष अप्रत्याख्याना - वरण आदि तीन कषायों में से अन्यतम तीन क्रोधादि, तीन वेदों में से कोई एक वेद, दो युगलों में से कोई एक युगल और मिश्र मोहनीय, इन सात प्रकृतियों का नियम से उदय होने के कारण सात प्रकृतिक उदयस्थान प्राप्त होता है । इसमें भंगों की एक चौबीसी होती है । सात प्रकृतिक उदयस्थान में भय अथवा जुगुप्सा को मिलाने पर आठ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यहाँ भंगों की दो चौबीसी होती हैं तथा सात प्रकृतिक उदयस्थान में भय, जुगुप्सा को युगपत् मिलाने से नौ प्रकृतिक उदयस्थान बनता है और भंगों की एक चौबीसी होती है । इस प्रकार मिश्र गुणस्थान में ७, ८ और 8 प्रकृतिक उदयस्थान तथा भंगों की चार चौबीसी जानना चाहिये । अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में छह से लेकर नौ प्रकृतिक चार उदयस्थान हैं - 'छाई नव उ अविरए' । अर्थात् ६ प्रकृतिक, ७ प्रकृतिक, ८ प्रकृतिक और प्रकृतिक, ये चार उदयस्थान हैं। छह प्रकृतिक उदयस्थान में अप्रत्याख्यानावरण आदि तीन कषायों में से अन्यतम तीन क्रोधादि, तीन वेदों में से कोई एक वेद, दो युगलों में से कोई एक युगल, इन छह प्रकृतियों का उदय होता है । इस स्थान में भंगों की एक चौबीसी होती है । इस छह प्रकृतिक उदयस्थान में भय या जुगुप्सा या वेदक सम्यक्त्व को मिलाने से सात प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यहाँ विकल्प से तीन प्रकृतियों के मिलाने के कारण भंगों की तीन चौबीसी होती हैं । उक्त छह प्रकृतियों में भय, जुगुप्सा अथवा भय, वेदक सम्यक्त्व अथवा जुगुप्सा, वेदक सम्यक्त्व, इस प्रकार इन दो प्रकृतियों को अनुक्रम से मिलाने पर आठ प्रकृतिक उदयस्थान हैं। यह स्थान तीन विकल्पों से बनने के कारण भंगों की तीन चौबीसियाँ होती हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org •
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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