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सप्ततिका प्रकरण
सत्ताइ दसउ मिच्छे सासायणमीसए नवक्कोसा । छाई नव उ अविरए देसे पंचाइ अद्वेदेव ॥ ४३ ॥ विरए खओवसमिए, चउराई सत्त छच्च पुव्वम्मि | अनियट्टिबारे पुण इक्को व दुवे व उदयंसा ॥ ४४ ॥ एगं सुहुमसरागो वेएइ अवेयगा भवे सेसा । भंगाणं च पमाणं पुव्वुद्दिट्ठेण
नायव्वं ॥ ४५ ॥
शब्दार्थ - सत्ताइ दसउ - सात से लेकर दस प्रकृति तक, मिच्छे- मिथ्यात्व गुणस्थान में, सासायण मीसाए—- सासादन और मिश्र में, नवुक्कोसा - सात से लेकर नो प्रकृति तक, छाईनवछह से लेकर नौ तक, अविरए — अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में, देसे - देशविरति गुणस्थान में, पंचाइअट्ठदेव - पाँच से लेकर आठ प्रकृति तक,
विरए खओवसमिए - प्रमत्त और अप्रमत्त गुणस्थान में, चउराईसत्त - चार से सात प्रकृति तक, छच्च और छह तक, अपुब्वम्मि - अपूर्वकरण गुणस्थान में अनियट्टिबायरे — अनिवृत्ति बादर गुणस्थान में, पुण - तथा, इक्को - एक, व — अथवा दुवे-दो, उदयंसा
उदयस्थान |
एगं - एक, सुहुमसरागो— सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान वाला, एइ - वेदन करता है, अवेयगा -अवेदक, भवे― होते हैं, सेसा - बाकी के गुणस्थान वाले, भंगाणं - भंगों का, च-और, पमाणंप्रमाण, पुम्वुद्दिट्ठेण - पहले कहे अनुसार, नायध्वं —- जानना चाहिए ।
(ख) दसणवणवादि चउतियतिद्वाण णवट्ठसगसगादि चऊ | ठाणा छादि तियं च य चदुवीसगदा अपुव्वोति ॥ उदयट्ठाणं दोन्हं पणबंधे होदि दोहमेकस्स |
चदुविहबंधट्ठाणे
सेसेसे
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हवे ठाणं ॥
- गो० कर्मकांड गा० ४८० व ४८२
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