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षष्ठ कर्मग्रन्थ
२६६
ज्ञाना
क्रम स०
गुणस्थान
दर्शनावरण
वेदनीय आयू | गोत्र | अंतराय
वरण
मिथ्यात्व
به
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४
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सासादन
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मिश्र अविरत देशविरत प्रमत्तविरत | अप्रमत्तविरत . अपूर्वकरण अनिवृत्तिकरण सूक्ष्मसंपराय उपशांतमोह क्षीणमोह सयोगिकेवली अयोगिकेवली
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अब गाथा के निर्देशानुसार मोहनीय कर्म के भंगों का विचार करते हैं। उनमें से भी पहले बंधस्थानों के भंगों को बतलाते हैं।
गुणठाणगेसु अट्ठसु एक्केक्कं मोहबंधठाणेसु । पंचानियट्टिठाणे बंधोवरमो परं तत्तो ॥४२॥
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