________________
( २४ )
तिका की रचना सातवीं शताब्दी के पूर्व हो चुकी थी और इस प्रकार मानने में किसी भी प्रकार को शंका नहीं करनी चाहिए। सप्ततिका की टीकाएँ __ पूर्व में यह संकेत किया गया है कि संक्षेप में कर्म सिद्धान्त के विभिन्न वर्ण्य-विषयों का कथन करने से सप्ततिका को कर्म-साहित्य के मूल ग्रंथों में माना जा सकता है। इसीलिए इस पर अनेक उत्तरवर्ती आचार्यों ने भाष्य, टीका, चूणि आदि लिखकर इसके अन्तर्हार्द को स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है। अभी तक सप्ततिका की निम्नलिखित टीकाओं, भाष्य, चूणि आदि की जानकारी प्राप्त हुई है
टीका का नाम परिमाण कर्ता रचनाकाल अन्तर्भाष्य गाथा गाथा १० अज्ञात अज्ञात भाष्य गाथा १६१ अभयदेवसूरि वि० १२-१३वीं श. चूर्णि पत्र १३२ अज्ञात अज्ञात चूर्णि श्लोक २३०० चन्द्रर्षि महत्तर अनु. ७वीं श. वृत्ति श्लोक ३७८० मलयगिरिसूरि वि० १२-१३वीं श. भाष्यवृत्ति श्लोक ४१५० मेरुतुग सूरि वि० सं० १४४६ टिप्पण श्लोक ५७० रामदेवगणी वि० १२वी. श. अवचूरि
गुणरत्न सूरि वि० १५वी. शता. इनमें से चन्द्रर्षि महत्तर की चूणि और आचार्य मलयगिरि की वृत्ति प्रकाशित हो चुकी है। इस हिन्दी व्याख्या में आचार्य मलयगिरि सूरि की वृत्ति का उपयोग किया गया है । टीकाकार आचार्य मलयगिरि __ सप्ततिका के रचयिता के समान ही टीकाकार आचार्य मलयगिरि का परिचय भी उपलब्ध नहीं होता है कि उनकी जन्मभूमि, माता-पिता, गच्छ, दीक्षा-गुरु, विद्या-गुरु आदि कौन थे ? उनके विद्याभ्यास, ग्रन्थरचना और विहारभूमि के केन्द्रस्थान कहाँ थे ? उनका
com
श्ला
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org