________________
सप्ततिका प्रकरण
इस प्रकार उक्त कथन का सारांश यह हुआ कि २१ और २४ प्रकृतिक में से प्रत्येक उदयस्थान में तो पाँच-पाँच सत्तास्थान होते हैं और २५ व २६ प्रकृतिक उदयस्थानों में से प्रत्येक में एक अपेक्षा से चार-चार और एक अपेक्षा से पाँच-पाँच सत्तास्थान होते हैं । अपेक्षा का कारण साधारण व प्रत्येक प्रकृति है । जिसका स्पष्टीकरण ऊपर किया गया है। ___ अब गाथा में निर्दिष्ट क्रमानुसार बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त जीवस्थान में बंधादि स्थानों को बतलाते हैं कि 'पणगा हवंति तिन्नेव' का सम्बन्ध "बायरा" से जोड़ें। जिसका अर्थ यह हुआ कि बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त जीवस्थान में पाँच बंधस्थान, पाँच उदयस्थान और पांच सत्तास्थान होते हैं। जिनका विवरण नीचे लिखे अनुसार है
बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त जीव भी मनुष्यगति और तिर्यंचगति के योग्य प्रकृतियों का बंध करता है। इसलिए उसके भी २३, २५, २६, २६ और ३० प्रकृतिक, ये पाँच बंधस्थान होते हैं और तदनुसार इनके कुल भंग १३६१७ होते हैं।
उदयस्थानों की अपेक्षा विचार करने पर यहाँ पर भी एकेन्द्रिय सम्बन्धी पाँच उदयस्थान २१, २४, २५, २६ और २७ प्रकृतिक होते हैं। क्योंकि सामान्य से अपान्तराल गति की अपेक्षा २१ प्रकृतिक, शरीरस्थ होने की अपेक्षा २४ प्रकृतिक, शरीर पर्याप्ति से पर्याप्त होने की अपेक्षा २५ प्रकृतिक और प्राणापान पर्याप्ति से पर्याप्त होने की अपेक्षा २६ प्रकृतिक, ये चार उदयस्थान तो पर्याप्त एकेन्द्रिय को नियम से होते ही हैं। किन्तु यह बादर एकेन्द्रिय है अत: यहाँ आतप और उद्योत नाम में से किसी एक का उदयस्थान और संभव है, जिससे २७ प्रकृतिक उदयस्थान भी बन जाता है। इसीलिये बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त जीवस्थान में २१, २४, २५, २६ और २७ प्रकृतिक, ये पाँच उदयस्थान माने गये हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org