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षष्ठ कर्मग्रन्थ
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उदयस्थान में पराघात को मिला देने पर २५ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यहाँ भी २४ प्रकृतिक उदयस्थान की तरह वे ही दो भंग होते हैं ।
उक्त २५ प्रकृतिक उदयस्थान में प्राणापान पर्याप्ति से पर्याप्त हुए जीव की अपेक्षा उच्छ्वास प्रकृति को मिलाने से २६ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यहाँ भी पूर्वोक्त दो भंग होते हैं । इस प्रकार सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त जीवस्थान में चार उदयस्थान और उनके सात भंग होते हैं ।
अब सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त जीवस्थान में सत्तास्थान बतलाते हैं । इस जीवस्थान में पाँच सत्तास्थान बतलाये हैं । वे पाँच सत्तास्थान २,८८,८६,८० और ७८ प्रकृतिक हैं । तिर्यंचगति में तीर्थंकर प्रकृति की सत्ता नही होती हैं । इसलिए ६३ और ६६ प्रकृतिक ये दो सत्तास्थान संभव नहीं होने से ह२, ८८, ८६, ८० और ७८ प्रकृतिक पाँच सत्तास्थान पाये जाते हैं । फिर भी जब साधारण प्रकृति के उदय के साथ २५ और २६ प्रकृतिक उदयस्थान लिये जाते हैं तब इस भंग में ७८ प्रकृतिक सत्तास्थान सम्भव नहीं हैं । क्योंकि अग्निकायिक और वायुकायिक जीवों को छोड़कर शेष सब जीव शरीर पर्याप्ति से पर्याप्त होने पर मनुष्यगति और मनुष्यानुपूर्वी का नियम से बन्ध करते हैं और २५ व २६ प्रकृतिक उदयस्थान शरीर पर्याप्ति से पर्याप्त हुए जीवों के ही होते हैं । अतः साधारण सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त जीवों के २५ और २६ उदयस्थान रहते ७८ प्रकृतिक सत्तास्थान नहीं होता है । शेष चार सत्तास्थान १२,८८,८६ और ८० प्रकृतिक होते हैं ।
लेकिन जब प्रत्येक प्रकृति के साथ २५ और २६ प्रकृतिक उदयस्थान लिये जाते हैं तब प्रत्येक में अग्निकायिक और वायुकायिक जीव भी शामिल हो जाने से २५ और २६ प्रकृतिक उदयस्थानों में ७५ प्रकृतिक सत्तास्थान भी बन जाता है ।
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