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सप्ततिका प्रकरण
इन सात जीवस्थानों में दो उदयस्थान हैं—- २१ और २४ प्रकृतिक । सो इनमें से २१ प्रकृतिक उदयस्थान में अपर्याप्त बादर एकेन्द्रिय के तिर्यंचगति, तिर्यंचानुपूर्वी, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, अगुरुलघु वर्णचतुष्क, एकेन्द्रिय जाति, स्थावर, बादर, अपर्याप्त, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, दुभंग, अनादेय, अयशः कीर्ति और निर्माण इने २१ प्रकृतियों का उदय होता है । यह उदयस्थान अपान्तराल गति में पाया जाता है । यहाँ भंग एक होता है क्योंकि यहाँ परावर्तमान शुभ प्रकृतियों का उदय नहीं होता है ।
अपर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव को भी यही उदयस्थान होता है । किन्तु इतनी विशेषता है कि उसके बादर के स्थान में सूक्ष्म प्रकृति का उदय कहना चाहिए । यहाँ भी एक भंग होता है ।
इस २१ प्रकृतिक उदयस्थान में औदारिकशरीर, हुडसंस्थान, उपघात और प्रत्येक व साधारण में से कोई एक इन चार प्रकृतियों को मिलाने और तिर्यंचानुपूर्वी इस प्रकृति को घटा देने पर २४ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । जो दोनों सूक्ष्म व बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीवस्थानों में समान रूप से सम्भव है । यहाँ सूक्ष्म अपर्याप्त और बादर अपर्याप्त में से प्रत्येक के साधारण और प्रत्येक नामकर्म की अपेक्षा दो-दो भंग होते हैं। इस प्रकार दो उदयस्थानों की अपेक्षा दोनों जीवस्थानों में से प्रत्येक के तीन-तीन भंग होते हैं ।
विकलेन्द्रियत्रिक अपर्याप्त, असंज्ञी अपर्याप्त और संज्ञी अपर्याप्त, इन पाँच जीवस्थानों में २१ और २६ प्रकृतिक, यह दो उदयस्थान होते हैं। इनमें से अपर्याप्त द्वीन्द्रिय के तिर्यंचगति, तिचानुपूर्वी, तेजस, कार्मण, अगुरुलघु, वर्णचतुष्क, द्वीन्द्रिय जाति, त्रस, बादर, अपर्याप्त, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, दुभंग, अनादेय, अयशःकीर्ति और निर्माण यह २१ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। जो अपान्तराल गति में
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