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________________ षष्ठ कर्मग्रन्थ २२६ संख्या उदयस्थान की और तीसरी संख्या सत्तास्थान की द्योतक है। गाथा में संख्या के ऐसे कुल छह पुंज हैं। दूसरी गाथा में चौदह जीवस्थानों को छह भागों में विभाजित किया गया है। जिसका यह तात्पर्य हुआ कि पहले भाग के जीवस्थान पहले पुंज के स्वामी दूसरे भाग के जीवस्थान दूसरे पुंज के स्वामी हैं इत्यादि। यद्यपि गाथागत संकेत से इतना तो जान लिया जाता है कि अमुक जीवस्थान में इतने बंधस्थान, इतने उदयस्थान और इतने सत्तास्थान हैं, किन्तु वे कौन-कौनसे हैं और उनमें कितनी-कितनी प्रकृतियों का ग्रहण किया गया है, यह ज्ञात नहीं होता है। अतः यहाँ उन्हीं का भंगों के साथ आचार्य मलयगिरि कृत टीका के अनुसार विस्तार से विवेचन किया जाता है। _ 'पण दुग पणगं सत्तेव अपज्जत्ता' दोनों गाथाओं के पदों को यथाक्रम से जोड़ने पर यह एक पद हुआ। जिसका यह अर्थ हुआ कि चौदह जीवस्थानों में से सात अपर्याप्त जीवस्थानों में से प्रत्येक में पाँच बंधस्थान, दो उदयस्थान और पाँच सत्तास्थान हैं । जिनका स्पष्टीकरण यह है कि सात प्रकार के अपर्याप्त जीव मनुष्यगति और तिर्यंचगति के योग्य प्रकृतियों का बंध करते हैं, देवगति और नरकगति के योग्य प्रकृतियों का नहीं, अत: इन सात अपर्याप्त जीवस्थानों में २८, ३१ और १ प्रकृतिक बंधस्थान न होकर २३, २५, २६, २६ और ३० प्रकृतिक, ये पाँच बंधस्थान होते हैं और इनमें भी मनुष्यगति तथा तिर्यंचगति के योग्य प्रकृतियों का ही बंध होता है। इन बंधस्थानों का विशेष विवेचन नामकर्म के बंधस्थान बतलाने के अवसर पर किया गया है, अत: वहाँ से समझ लेना चाहिये। यहाँ सब बंधस्थानों के मिलाकर प्रत्येक जीवस्थान में १३६४७ भंग होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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