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सप्ततिका प्रकरण तीन उदयस्थान हैं। वे इस प्रकार जानना चाहिये कि यद्यपि मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में अनन्तानुबंधी चतुष्क में से किसी एक के उदय के बिना ७ प्रकृतिक उदयस्थान भी होता है, परन्तु वह इन आठ जीवस्थानों में नहीं पाया जाता है। क्योंकि जो जीव उपशमश्रेणि से च्युत होकर क्रमशः मिथ्यादृष्टि होता है उसी के मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में एक आवली काल तक मिथ्यात्व का उदय नहीं होता, परन्तु इन जीवस्थान वाले जीव तो उपशमश्रेणि पर चढ़ते ही नहीं हैं, अतः इनको सात प्रकृतिक उदयस्थान संभव नहीं है।
उक्त आठ जीवस्थानों में नपुंसकवेद, मिथ्यात्व, कषाय चतुष्क और दो युगलों में से कोई एक युगल, इस तरह आठ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। इस उदयस्थान में आठ भंग होते हैं, क्योंकि इन जीवस्थानों में एक नपुंसकवेद का ही उदय होता है, पुरुषवेद और स्त्रीवेद का नहीं, अतः यहाँ वेद का विकल्प तो संभव नहीं किन्तु यहाँ विकल्प वाली प्रकृतियाँ क्रोध,आदि चार कषाय और दो युगल हैं, सो उनके विकल्प से आठ भंग होते हैं।
इस आठ प्रकृतिक उदयस्थान में भय और जुगुप्सा को विकल्प से मिलाने पर नौ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहाँ एक-एक विकल्प के आठ-आठ भंग होते हैं अत: आठ को दो से गुणित करने पर सोलह भंग होते हैं । अर्थात् नौ प्रकृतिक उदयस्थान के सोलह भंग हैं। आठ प्रकृतिक उदयस्थान में भय और जुगुप्सा को युगपत् मिलाने से दस प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यह एक ही प्रकार का है, अत: पूर्वोक्त आठ भंग ही होते हैं। इस प्रकार तीनों उदयस्थानों के कुल ३२ भंग हुए, जो प्रत्येक जीवस्थान में अलग-अलग प्राप्त होते हैं।
पर्याप्त बादर एकेन्द्रिय आदि पांच जीवस्थानों में से प्रत्येक में चार-चार उदयस्थान हैं—सात, आठ, नौ और दस प्रकृतिक । सो
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