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________________ २१६ सप्ततिका प्रकरण साता का बंध, असाता का उदय और साता-असाता की सत्ता; चौथा भंग-साता का बंध, साता का उदय और साता-असाता की सत्ता, यह दो विकल्प पहले मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से लेकर तेरहवें सयोगिकेवली गुणस्थान तक पाये जाते हैं। इसके बाद बंध का अभाव हो जाने से पाँचवां भंग-असाता का उदय और साता-असाता की सत्ता तथा छठा भंग-साता का उदय और साता-असाता दोनों की सत्ता, यह दो भंग अयोगिकेवली गुणस्थान में द्विचरम समय तक प्राप्त होते हैं और चरम समय में सातवां भंग-असाता का उदय और असाता की सत्ता तथा आठवां भंग-साता का उदय और साता की सत्ता, यह दो भंग पाये जाते हैं। सयोगिकेवली और अयोगिकेवली द्रव्यमन के सम्बन्ध से संज्ञी कहे जाते हैं, अत: संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवस्थान में वेदनीय कर्म के आठ भंग मानने में किसी प्रकार का विरोध नहीं है। इस प्रकार से वेदनीय कर्म के भंगों का कथन करके अब गोत्र कर्म के भंगों को बतलाते हैं कि 'सत्तग तिगं च गोए'-वे इस प्रकार हैं____ गोत्रकर्म के पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवस्थान में सात भंग प्राप्त होते हैं। वे सात भंग इस प्रकार हैं-१. नीच का बंध, नीच का उदय और नीच की सत्ता, २. नीच का बंध, नीच का उदय और उच्च-नीच दोनों की सत्ता, ३. नीच का बंध, उच्च का उदय और उच्च-नीच दोनों की सत्ता, ४. उच्च का बंध, नीच का उदय और उच्च-नीच दोनों की सत्ता, ५. उच्च का बंध, उच्च का उदय और उच्च-नीच की सत्ता, ६. उच्च का उदय और उच्च-नीच दोनों की सत्ता तथा ७. उच्च का उदय और उच्च की सत्ता।। उक्त सात भंगों में से पहला भंग उन संज्ञियों को होता है जो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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