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________________ वष्ठ कर्म ग्रन्थ एगेगमेगती से एगे एगुदय उवरयबंधे दस दस वेयगसंतम्मि शब्दार्थ - एगेगं एक, एक, एगतीसे- इकतीस प्रकृतिक बंधस्थान में, एगे -- एक के बंधस्थान में, एगुदय -- एक उदयस्थान, अट्ठ संतम्मि आठ सत्तास्थान, उवरयबंधे -- बंध के अभाव में, बस बस -- दस-दस, वेयग- उदय में, संतम्भि -- सत्ता में, ठाणाणिस्थान । १ तुलना कीजिये -- अट्ठ संतम्मि ! ठाणाणि ॥ ३२ ॥ नव पंचोदयसत्ता अट्ठ चउरट्ठवीसे एक्क्के इगतीसे एक्के उवरय बंधे दस दस दोनों गाथार्थ - तेईस, पच्चीस और छब्बीस प्रकृतिक बंधस्थानों में नौ-नौ उदयस्थान और पाँच-पाँच सत्तास्थान होते हैं । अट्ठाईस के बंधस्थान में आठ उदयस्थान और चार सत्तास्थान होते हैं। उनतीस एवं तीस प्रकृतिक बंधस्थानों में नौ उदयस्थान तथा सात सत्तास्थान होते हैं । इकतीस प्रकृतिक बंधस्थान में एक उदयस्थान व एक सत्तास्थान होता है । एक प्रकृतिक बंधस्थान में एक उदयस्थान और आठ सत्तास्थान होते हैं । बंध के अभाव में उदय और सत्ता के दस-दस स्थान जानना चाहिए । तेवीसे पणवीसछव्वीसे । नवसन्तिगती सतीसे य ॥ एक्कुदय अट्ठ संतसा । नामोदयसंतठाणाणि ॥ Jain Education International णवपंचोदयसत्ता तेवीसे, पण्णवीस छब्बीसे । अट्ठ चदुरटुवीसे णवसत्तगुती सतीसम्मि ॥ एगेगं इगितीसे एगे एगुदयमट्ठ सत्ताणि । उवरदबंधे दस दस उदयंसा होंति नियमेणं ॥ १८६ analada - पंचसंग्रह सप्ततिका, गा० ६६, १०० For Private & Personal Use Only -गो० कर्मकांड, गा० ७४०, ७४१ www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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