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________________ १८२ सप्ततिका प्रकरण की अपेक्षा १२, तिर्यंच पंचेन्द्रियों की अपेक्षा १९५२ वैक्रिय तिर्यंच पंचेन्द्रियों की अपेक्षा १६, मनुष्यों की अपेक्षा ५७६, वैक्रिय मनुष्यों की अपेक्षा &, आहारक संयतों की अपेक्षा २, तीर्थंकर की अपेक्षा १, देवों की अपेक्षा १६ और नारकों की अपेक्षा १ भङ्ग है। इनका जोड़ १२+११५२+१६+५७६+६+२+१+१६+१ = १७८५ होता है । अतः २६ प्रकृतिक उदयस्थान के कुल भङ्ग १७८५ प्राप्त होते हैं । ३० प्रकृतिक उदयस्थान में विकलेन्द्रियों की अपेक्षा १५, तिर्यंच पंचेन्द्रियों की अपेक्षा १७२८, वैक्रिय तिर्यंच पंचेन्द्रियों की अपेक्षा ८, मनुष्यों की अपेक्षा ११५२, वैक्रिय मनुष्यों की अपेक्षा १, आहारक संयतों की अपेक्षा १. केवलियों की अपेक्षा १ और देवों की अपेक्षा ८ भङ्ग पूर्व में बतला आये हैं। इनका जोड़ १८+१७२८+६+११५२+ १+१+१+८=२६१७ होता है । अतः ३० प्रकृतिक उदयस्थान के २९१७ भङ्ग होते हैं । ३१ प्रकृतिक उदयस्थान में विकलेन्द्रियों की अपेक्षा १२ तिर्यंच पंचेन्द्रियों की अपेक्षा ११५२, तीर्थंकर की अपेक्षा १ भङ्ग पूर्व में बतलाया है, और इनका कुल जोड़ ११६५ है, अत: ३१ प्रकृतिक उदयस्थान के ११६५ भङ्ग कहे हैं । ६ प्रकृतिक उदयस्थान का तीर्थंकर की अपेक्षा १ भंग होता है और ८ प्रकृतिक उदयस्थान का अतीर्थंकर की अपेक्षा १ भंग होता है । इन दोनों को पूर्व में बतलाया जा चुका है । अतः ६ प्रकृतिक और ८ प्रकृतिक उदयस्थान का १, १ भंग होता है । इस प्रकार २० प्रकृतिक आदि बारह उदयस्थानों के १+४२+११ +३३+६००+ ३३ + १२०२+१७८५ + २६१७ ÷ ११६५ +१+१= ७७६१ भंग होते हैं। नामकर्म के उदयस्थानों के भंग व अन्य विशेषताओं सम्बन्धी विवरण इस प्रकार समझना चाहिये Jain Education International For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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