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सप्ततिका प्रकरण
गाथार्थ-बीस प्रकृति के उदयस्थान से लेकर आठ प्रकृति के उदयस्थान पर्यन्त अनुक्रम से १, ४२, ११, ३३, ६००, ३३, १२०२, १७८५, २६१७, ११६५, १, और १ भंग होते हैं।'
विशेषार्थ-पहले नामकर्म के २०, २१, २४, २५, २६, २७, २८, २९, ३०, ३१, ६ और ८ प्रकृतिक, इस प्रकार १२ उदयस्थान बतलाये गये हैं तथा इनमें से किस गति में कितने उदयस्थान और उनके कितने भंग होते हैं, यह भी बतलाया जा चुका है। अब यहाँ यह बतलाते हैं कि उनमें से किस उदयस्थान के कितने भंग होते हैं ।
बीस प्रकृतिक उदयस्थान का एक भंग है। वह अतीर्थकर केवली के होता है । २१ प्रकृतिक उदयस्थान के ४२ भंग हैं। वे इस प्रकार समझना चाहिये-एकेन्द्रियों की अपेक्षा ५, विकलेन्द्रियों की अपेक्षा ६, तियंच पंचेन्द्रियों की अपेक्षा , मनुष्यों की अपेक्षा ६, तीर्थंकर की अपेक्षा १, देवों की अपेक्षा ८ और नारकों की अपेक्षा १ । इन सब का जोड़ ५+६+६+६+१+८+१=४२ होता है।
२४ प्रकृतिक उदयस्थान एकेन्द्रियों को होता है, अन्य को नहीं
१ गो० कर्मकांड गाथा ६०३---६०५ तक में इन २० प्रकृतिक आदि उदय
स्थानों के मंग क्रमशः १, ६०, २७, १६, ६२०, १२, ११७५, १७६०, २६२१, ११६१, १, १ बतलाये हैं। जिनका कुल जोड़ ७७५८ होता है
“वीसादीणं मंगा इगिदालपदेसु संभवा कमसो। एक्कं सट्ठी चेव य सत्तावीसं च उगुवीसं ॥ वीसुत्तरछच्चसया बारस पण्णत्तरोहिं संजुत्ता। एक्कारससयसंखा सत्तरससयाहिया सट्ठी ।। ऊणत्तीससयाहियएक्कावीसा तदोवि एकट्ठी ।
एक्कारससयसहिया एक्केक्क विसरिसगा भंगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org