SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 225
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७८ सप्ततिका प्रकरण स हित २८ प्रकृतिक उदयस्थान में उद्योत नाम को मिला देने पर २६ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । देवों के उद्योत नाम का उदय उत्तरविक्रिया करने के समय होता है। यहाँ भी पूर्ववत् आठ भङ्ग होते हैं। इस प्रकार २६ प्रकृतिक उदयस्थान के कुल भङ्ग १६ हैं। ___भाषा पर्याप्ति से पर्याप्त हुए देवों के सुस्वर सहित २६ प्रकृतिक उदयस्थान में उद्योत को मिला देने पर ३० प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहां भी आठ भङ्ग होते हैं। ___इस प्रकार देवों के २१, २५, २७, २८, २६ और ३० प्रकृतिक, ये छह उदयस्थान होते हैं तथा उनमें क्रमशः ८+८-८+१+१६+ ८=६४ भङ्ग होते हैं। ___ अब नारकों के उदयस्थानों और उनके भङ्गों का कथन करते हैं। नारकों के २१, २५, २७, २८ और २६ प्रकृतिक, ये पाँच उदयस्थान होते हैं। यहाँ ध्रुवोदया बारह प्रकृतियों के साथ नरकगति, नरकानुपूर्वी, पंचेन्द्रिय जाति, त्रस, बादर, पर्याप्त, दुर्भग, अनादेय और अयशःकीर्ति, इन नौ प्रकृतियों को मिला देने पर २१ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । नारकों के सब अप्रशस्त प्रकृतियों का उदय है, अतः यहाँ एक भङ्ग होता है। ___ अनन्तर शरीरस्थ नारक के वैक्रिय शरीर, वैक्रिय अंगोपांग, हुंडसंस्थान, उपघात और प्रत्येक, इन पाँच प्रकृतियों को मिलाने और नरकानुपूर्वी के निकाल देने पर २५ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यहाँ भी एक भंग होता है। शरीर पर्याप्ति से पर्याप्त हुए नारक के २५ प्रकृतिक उदयस्थान में पराघात और अप्रशस्त विहायोगति इन दो प्रकृतियों को मिला देने पर २७ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। इसका भी एक भङ्ग होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy