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________________ १७६ सप्ततिका प्रकरण १२,१२ भङ्ग होते हैं। किन्तु वे सामान्य मनुष्यों के उदयस्थानों में सम्भव होने से उनकी अलग से गिनती नहीं की है। ६ प्रकृतिक उदयस्थान में मनुष्यगति, पंचेन्द्रिय जाति, बस, बादर, पर्याप्त, सुभग, आदेय, यश:कीर्ति और तीर्थंकर, इन नौ प्रकृतियों का उदय होता है। यह नौ प्रकृतिक उदयस्थान तीर्थंकर केवली के अयोगिकेवली गुणस्थान में प्राप्त होता है। इस उदयस्थान में से तीर्थकर प्रकृति को घटा देने पर आठ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यह अयोगिकेवली गुणस्थान में अतीर्थंकर केवली के होता है। ___ यहाँ केवली के उदयस्थानों में २०,२१,२७,२६,३०,३१, ६ और ८ इन आठ उदयस्थानों का एक-एक विशेष भङ्ग होता है। अतः आठ भङ्ग हुए। इनमें से २० प्रकृतिक और ८ प्रकृतिक, इन दो उदयस्थानों के दो भङ्ग अतीर्थकर केवली के होते हैं तथा शेष छह भङ्ग तीर्थकर केवली के होते हैं। इस प्रकार सब मनुष्यों के उदयस्थान सम्बन्धी कुल भङ्ग २६०२+३५+७+८= २६५२ होते हैं। अब देवों के उदयस्थान और उनके भङ्गों का कथन करते हैं। देवों के २१, २५, २७, २८, २६ और ३० प्रकृतिक, ये छह उदयस्थान होते हैं। नामकर्म की ध्रुवोदया बारह प्रकृतियों में देवगति, देवानुपूर्वी, पंचेन्द्रिय जाति, बस, बादर, पर्याप्त, सुभग और दुर्भग में से कोई एक, आदेय और अनादेय में से कोई एक तथा यश:कीर्ति और अयश:कीर्ति में से कोई एक, इन नौ प्रकृतियों के मिला देने पर २१ प्रकृतिक १ इह केवल्युदयस्थानमध्ये विशति-एकविंशति-सप्तविंशति,एकोनविंशत्-त्रिशद् एकत्रिंशद्-नवाऽष्टरूपेष्वष्टसूदयस्थानेषु प्रत्येककैको विशेषभंगः प्राप्यते इत्यष्टो भंगाः । तत्र विंशत्यष्ट कयोभंगावतीर्थकृतः शेषेषु षट्सु उदयस्थानेषु तीर्थकृतः षड् भंगाः । --सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० १८६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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